श्रीमद् भागवत भाव//भागवत कहती है , कि भजन करते समय उसका मुख्य केंद्र मन होना चाहिए , तन नहीं । क्योंकि प्रभु क्रियाओं को नहीं , उसके मनोभावों को देखते हैं । तिलक छापों से धार्मिकता का दिखावा तो होजाता है , स्वादिष्ट भोजन और गले में मालाओं के साथ धन की प्राप्ति भी होजाती है , लेकिन भगवान की नहीं-भाई रामगोपालानन्द गोयल.ऋषिकेश

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” आज का श्रीमद् भागवत भाव “
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★ भागवत कहती है , कि भजन करते समय उसका मुख्य केंद्र मन होना चाहिए , तन नहीं । क्योंकि प्रभु क्रियाओं को नहीं , उसके मनोभावों को देखते हैं । तिलक छापों से धार्मिकता का दिखावा तो होजाता है , स्वादिष्ट भोजन और गले में मालाओं के साथ धन की प्राप्ति भी होजाती है , लेकिन भगवान की नहीं ।और यदि भगवान ही नहीं रीझे , तो फिर उस सबका लाभ क्या ?

  • रावण के संग क्या गया,कर्ण से क्या गया छूट?
    अपयश पाया लंकपति , कर्ण लिया यश लूट।।
    सो साधक ले लें प्रेरणा , भजन ही आए काम।
    निष्कामी को मुक्ति है , नहीं उसको रोटराम।।

★ जो व्यक्ति तन की निर्मलता के मुकाबले मन की निर्मलता को महत्व नहीं देता , वह स्वयं का दुश्मन बनकर जीता है । क्योंकि मन मैला होने के उसके हर कर्म में कुछ न कुछ मैलापन अवश्य आ जाएगा । तब शरीर की मृत्यु के बाद सूक्ष्मशरीर के रूप में उसका मनोमय प्राण ही तो उसके साथ जाएगा , जिसको कि पढकर यमराज उसके लिए सद्गति या दुर्गति का प्रावधान निश्चित करते हैं । इसीलिए तो मन के बारे में शास्त्रों ने कहा है , कि

  • मनः एव मनुष्याणां , कारणं बंध मोक्षयो।
    बन्धाय विषयासक्तं , मुक्तै निर्विषयं स्मृतम्।। उसका मैलामन उसे दुर्गति ही दिलवाएगा , और निर्मल मन मुक्ति का कारण बनेगा ।

★ मनुष्य के तन की सुन्दरता तो क्षणिक है । उसके पास एक मन ही ऐसा है , जो बहुत जल्दी नहीं बदलता । एक बार यदि मैला हो गया , तो फिर निर्मल हो पाना बहुत मुश्किल है । तभी तो सद्संतों ने हमेशा अपने ही मन को समझाया है । और वे संसारियों से भी यही कहते हैं , कि अपनी सम्पत्ति व ऊर्जा इसको निर्मल करने में खपाओ । यदि इसे निर्मल कर लिया , तो अब तो विवेकी कहलाओगे , और अंत में भगवत्प्राप्ति हो जाएगी ।

                                      ( क्रमशः ) 

( भाई रामगोपालानन्द , गोयल ‘ रोटीराम ‘ )
ऋषिकेश 9412588877 , 9118321832
Mail – ramgopalgoyal11@gmail.com

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