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सुकून की दरग़ाह

इस जमाने से बेशुमार, शिकायतें न किया करो
अपनी बदौलत भी कुछ तो, हासिल किया करो

चढ़ाकर खुद के ऊपर, हिम्मत का मीठा सुरूर
मुश्क़िलों का दरिया, बिन डूबे पार किया करो

न सुनेगा तुम्हारी तकलीफ़, ये जालिम जमाना
अपने दर्द के साथ, ख़ुद गुफ़्तगू कर लिया करो

बने बनाए रिश्ते टूट जाते, नफ़रत की वज़ह से
मोहब्बत की ज़ेल में, हर रिश्ता क़ैद किया करो

सभी ने मिलकर दुनिया को, दोज़ख बना डाला
फिर से जन्नत बनाने में, अपना वक्त दिया करो

हर कोई वाकिफ़ है यहां, ज़ख्म देने के इल्म से
रहम का मरहम देना भी, कुछ सीख लिया करो

कब तक रोते रहोगे, कड़वे लम्हों की यादें लिए
बेफिक्री के धुंए में तुम, उनको उड़ा दिया करो

चैन की उम्मीद लेकर, आएंगे लोग तुम्हारे पास
खुद को तुम सुकून की, दरग़ाह बना लिया करो

शब्बा खैर

मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान

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