राम कथा भाग १२८
जय श्री राम।।
श्री राम जी ने विभीषण जी को अपनी शरण में ले लिया। शरण में लेने के पश्चात श्री राम जी ने विभीषण जी को लंकेश कहकर संबोधित किया।
अपने लिए लंकेश शब्द सुनकर विभीषण जी को मन में संकोच हुआ। विभीषण जी जानते हैं। कि प्रभु अंतर्यामी हैं। मेरे मन के भाव को जान चुके हैं । इसीलिए मुझे लंकेश कहा है।जब मैं लंका से चल कर आ रहा था। तब मैंने लंकेश होने का सपना देखा था। और यह बात श्री राम जी जान चुके है । विभीषण जी ने राम जी से कहा प्रभु। जब आपने मेरी यह चोरी पकड़ ही ली है। तो अब मैं अपने भाव और स्पष्ट कर देना चाहता हूं ।आपने मुझे लंकेश कहा है। और मैं जानता हूं कि क्यों कहा है। मेरे मन में यह विचार आया था। इसलिए आपने मुझे लंकेश कहा है। प्रभु लंकेश होने की इच्छा मेरी पहले थी ।अब नहीं है ।अब तो मैं केवल आपके चरणों का ही आश्रय पाना चाहता हूं। मुझे केवल आपकी भक्ति ही चाहिए। मेरी जो लंकेश होने की इच्छा थी वह आपके चरणों के दर्शन के पश्चात मेरी मन रूपी सरिता में बह गई है।अब मेरी इच्छा नहीं है। रामजी ने कहा ।कि जब मनुष्य की इच्छा होती है। तब मेरी इच्छा उसे कुछ देने की नहीं होती है। और जब मनुष्य अपने मन से इच्छाओं का त्याग कर देता है। तब उसे देने की मेरी इच्छा होती है। तुम्हारे मन में अब राजा बनने की इच्छा नहीं है। किंतु अब मेरे मन में तुम्हें राजा बनाने की इच्छा है। तुम कह रहे हो कि मेरी यह विचारधारा तो आपके चरणों के दर्शन के पश्चात मन रूपी सरिता में बह गई है ।तो सरिता तो सब जाकर समुद्र में ही मिलती है। चलो तुम्हारी इच्छाओं को समुद्र का जल मंगाकर ही पूरा किया जाए। तुम्हारी इच्छाओं को वापस लाया जाए।और इस तरह प्रभु श्री रामजी ने समुद्र का जल मंगाकर विभीषण का राजतिलक कर दिया ।लंका का राजा बना दिया। किसी ने राम जी से कहा। प्रभु आपने यह क्या किया है? अभी तो रावण मरा ही नहीं है। अभी उस पर विजय पाना बाकी है ।और आपने विभीषण जी को राजा बना दिया है। यदि विभीषण की तरह रावण भी अपना अभिमान छोड़कर आप की शरण में आ गया तब क्या करोगे? क्या विभीषण जी से राज्य वापस लोगे? भगवान ने कहा नहीं ।मैंने लंका का राजा विभीषण को बना दिया है। और अब लंका का राजा विभीषण ही रहेगा। पहली बात तो रावण मेरी शरण में आयगा नहीं। क्योंकि उसे अभिमान ही इतना है ।और यदि फिर भी यदि वह मेरी शरण में आ जाता है तो मैं उसे अयोध्या का राज्य दे दूंगा ।अभी हम दो भाई वनवास में घूम रहे हैं। फिर चारों भाई वनवास में घूमेंगे ।रघुकुल की रीत सदा से चली आ रही है। चाहे प्राण जाए पर प्रण झूठा नहीं होगा। इस तरह रामजी ने विभीषण का राजतिलक किया। आगे क्या करना है ।इस तरह की योजना बनाते हैं ।यह प्रशंग अगली पोस्ट में जय श्री राम।।
