विश्वास- स्वयं पर
विश्वास और प्रेम में एक ही समानता है दोनों में से किसी को भी हठात् पैदा नहीं किया जा सकता है!!
लोग बहुत प्रसन्न होकर कहते है कि उनको क्रोध बहुत आता है अगर हमको क्रोध आता है तो क्रोध ही हमारा स्वामी है और हम क्रोध के दास हो गए। कभी क्रोध आए तो कह दो इस समय नही आना है यदि चला गया तो हम मालिक हैं। यदि नही गया तो क्रोध ही हमारा मालिक है
यदि मैं अपना स्वामी नही हूँ तो मेरा स्वामी क्रोध है, लालच है, ईर्ष्या है, द्धेष है, मेरी वासना है इसने मुझसे काम करा लिया। जिस प्रकार दुर्योधन ने इन विकारों को अपना मालिक बना लिया, दुर्योधन के अंदर जो विकृतियाँ और बुराइयाँ थी उन्होंने ही दुर्योधन और उसके 99 भाइयों को मरवा डाला, लेकिन दुर्योधन को जीवन भर यह भ्रम बना रहा कि, मैं ही स्वामी हूँ।
जो हमको क्रोधित करता है वह हमको जीत लेता है। जैसे कार्यस्थल में हमको हमारे प्रतिद्वंद्वी क्रोध दिला सकते है, और वह क्रोध दिलाने का ऐसा समय चुनेंगे जब आप वरिष्ठ प्रबंधक की निगरानी में हों।
ऐसी दासता से स्वयं को बचाना, केवल हमारे स्वयं के वश में ही है। बस करना इतना है कि इस दासता के प्रति जागरूक रह, विश्वास के साथ, इसके नियंत्रण से मुक्त होने के प्रयास करते रहें
















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