मानसरोवर झील का इतिहास पौराणिक और धार्मिक है, जिसे हिंदू धर्म में ब्रह्मा के मन से उत्पन्न माना जाता है, बौद्ध धर्म में रानी माया से, और जैन धर्म में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ से जोड़ा जाता है; यह पवित्र झील कैलाश के पास स्थित है और सदियों से भक्तों के लिए पापों का प्रायश्चित करने और आध्यात्मिक शुद्धिकरण का स्थान रही है, जिसे कालिदास जैसे कवियों ने “मोतियों” के समान बताया है।
पौराणिक महत्व (Mythological Significance)
ब्रह्मा से उत्पत्ति: हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने इस झील की कल्पना अपने मन में की थी, इसलिए इसका नाम ‘मानसरोवर’ (मन + सरोवर) पड़ा।
शक्तिपीठ: यह 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ देवी सती का दायाँ हाथ गिरा था, इसलिए यहाँ एक शिला को देवी के रूप में पूजा जाता है।
शिव से संबंध: गर्मियों में पिघलती बर्फ से आने वाली ध्वनि को भगवान शिव के डमरू की ध्वनि माना जाता है, और यहाँ खिलने वाले नीलकमल भी खास माने जाते हैं।
सरयू नदी का उद्गम: पौराणिक कथाओं के अनुसार, पवित्र सरयू नदी का जन्म मानसरोवर से हुआ है।
धार्मिक मान्यताएँ (Religious Beliefs)
हिंदू धर्म: कैलाश पर्वत की परिक्रमा के बाद यहाँ स्नान और जलपान को पाप मुक्ति और मन की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे आत्मा को शांति मिलती है।
बौद्ध धर्म: बौद्ध धर्म में इसे रानी माया (भगवान बुद्ध की माता) से जोड़ा जाता है, जो यहीं गर्भवती हुई थीं। यह झील बौद्धों के लिए भी पूजनीय है।
जैन धर्म: जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर, ऋषभनाथ, को यहीं ज्ञान प्राप्त हुआ था, इसलिए यह जैनियों के लिए भी एक पवित्र स्थल है।
ऐतिहासिक संदर्भ (Historical Context)
कालिदास: चौथी शताब्दी के महान संस्कृत कवि कालिदास ने मानसरोवर को “मोतियों के समान” बताया और लिखा कि इसके जल से सौ जन्मों के पाप धुल जाते हैं, जिससे इसका महत्व और बढ़ गया।
यात्रा का इतिहास: हिंदू, बौद्ध और जैन
आसमान में लाइट का चमकना : दावा किया जाता है कि कई बार कैलाश पर्वत पर 7 तरह की लाइटें आसमान में चमकती हुई देखी गई हैं। नासा के वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि हो सकता है कि ऐसा यहां के चुम्बकीय बल के कारण होता हो। यहां का चुम्बकीय बल आसमान से मिलकर कई बार इस तरह की चीजों का निर्माण कर सकता है।

कैलाश पर्वत के ऊपर सीधे हेलीकॉप्टर से जाना प्रतिबंधित है, लेकिन कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल होता है, खासकर नेपाल से, जो यात्रा को छोटा और आरामदायक बनाता है; इसमें हेलीकॉप्टर से नेपाल-तिब्बत सीमा (हिल्सा) तक जाया जाता है और फिर आगे की यात्रा गाड़ी और छोटी पैदल यात्रा के ज़रिए होती है, क्योंकि पर्वत के ऊपर विमान संचालन तकनीकी और धार्मिक कारणों से वर्जित है, जिससे यह बुजुर्गों और कम समय वाले यात्रियों के लिए एक अच्छा विकल्प है।
क्यों नहीं उड़ते हेलीकॉप्टर सीधे पर्वत के ऊपर?
धार्मिक कारण: यह एक पवित्र स्थल है और इसके ऊपर से उड़ान भरने से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचती है।
तकनीकी कारण: 6,638 मीटर (21,778 फीट) की ऊंचाई पर हवा का घनत्व कम होता है, जिससे विमान के इंजन और रोटर ठीक से काम नहीं कर पाते।
मौसम: यहाँ का मौसम अचानक बदलता है, जिससे उड़ानें जोखिम भरी हो जाती हैं।
हेलीकॉप्टर से यात्रा कैसे होती है?
पहुँचने का मार्ग: आप काठमांडू या भारत के लखनऊ से नेपालगंज जाते हैं।
नेपाल के अंदर: नेपालगंज से सिमिकोट और फिर हेलीकॉप्टर से हिल्सा (नेपाल-तिब्बत सीमा) तक जाते हैं।
तिब्बत में प्रवेश: हिल्सा से तिब्बत में प्रवेश कर, आगे की यात्रा तकलाकोट (पुरंग) और मानसरोवर झील के लिए गाड़ी से होती है।
दर्शन: हेलीकॉप्टर से आपको कैलाश पर्वत के नज़दीकी हवाई दर्शन (Air View) मिलते हैं, लेकिन सीधे शिखर पर नहीं जाते।
फायदे:
यात्रा का समय काफी कम हो जाता है (कुछ दिनों में पूरी हो सकती है)।
लंबी और कठिन ट्रेकिंग से बचाव होता है, जो बुजुर्गों के लिए आरामदायक है।
संक्षेप में, आप कैलाश पर्वत के पास तक हेलीकॉप्टर से जा सकते हैं और हवाई दर्शन कर सकते हैं, लेकिन पर्वत के ऊपर या उस पर उतरने के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
















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