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भाग्य और कर्म का संतुलन

इसके ज़्यादा उसके कम,
सबके अपने अपने ग़म।

जो लिखा है वो होगा,
पन्ना पहनो या नीलम।।

यह दोहा जीवन, भाग्य और कर्म के गहरे दर्शन को सरल शब्दों में उजागर करता है। इसमें कहा गया है कि किसी के पास अधिक है, किसी के पास कम—लेकिन दुख या संतोष हर किसी के अपने होते हैं। जीवन में सुख-दुख का संतुलन केवल बाहरी वस्तुओं या रत्नों से नहीं बल्कि नियति और कर्म से तय होता है। इस पर एक भावनात्मक और दार्शनिक लेख नीचे प्रस्तुत है।

मनुष्य सदा से अपने भाग्य और कर्म के रहस्यों को समझने का प्रयास करता आया है। यह दोहा एक सशक्त संदेश देता है कि संसार में किसी के पास सब कुछ होते हुए भी संतोष नहीं है, और कोई व्यक्ति सीमित साधनों में भी शांति पाता है। कारण सरल है—हर व्यक्ति का भाग्य, उसकी जीवन यात्रा अलग होती है। “इसके ज़्यादा उसके कम” में यह सच्चाई छिपी है कि तुलना करने से केवल असंतोष ही जन्म लेता है, जबकि वास्तविक सुख आत्मस्वीकार में मिलता है।

“सबके अपने अपने ग़म” यह बताता है कि कोई भी व्यक्ति पूर्णतः निश्चिंत नहीं है। जो बाहर से प्रसन्न दिखता है, उसके भीतर भी कुछ पीड़ा, संघर्ष या अधूरापन छिपा होता है। जीवन की चुनौती यह नहीं है कि दुख से बचा जाए, बल्कि यह कि उसे स्वीकार कर उससे सीख ली जाए।

“जो लिखा है वो होगा” में नियति का बोध है। यह बात हिंदू दर्शन, वेदांत और गीता सभी में प्रतिपादित है कि जो कुछ घटता है, वह कर्मफल है—पूर्व जन्मों के कर्मों और वर्तमान प्रयासों का परिणाम। मनुष्य अपनी नियति बदलने की कोशिश तो कर सकता है, पर जो तय है वह किसी न किसी रूप में घटता ही है।

अंतिम पंक्ति “पन्ना पहनो या नीलम” अत्यंत व्यंग्यपूर्ण ढंग से बताती है कि भाग्य को बदला नहीं जा सकता। ज्योतिष शास्त्र में रत्न धारण करना ग्रहों की शांति के लिए बताया गया है, किंतु यदि कर्म शुद्ध न हो, तो कोई भी पत्थर आपके जीवन का मार्ग नहीं बदल सकता। यह दोहा वस्तुतः कहता है कि भाग्य को स्वीकार कर कर्म के मार्ग पर चलना यही सच्चा उपाय है।

आत्मचिंतन का संदेश

यह दोहा हमें आत्मावलोकन की प्रेरणा देता है—क्या हम दूसरों के भाग्य से तुलना करके दुखी हो रहे हैं, या अपने कर्मों से संतुष्टि प्राप्त कर रहे हैं? यह समझ लेना आवश्यक है कि बाहरी रत्न, पद या संपत्ति नहीं बल्कि आंतरिक शांति ही सच्ची उपलब्धि है।

अंतर्यात्रा का मार्ग तभी संभव है जब व्यक्ति स्वयं से ईमानदारी रखे। जो दुख को स्वीकार कर आगे बढ़ता है, वही वास्तव में मजबूत होता है। जीवन में जो लिखा है, वह अपनी गति से घटेगा, पर मनुष्य को यह स्वतंत्रता अवश्य है कि वह उसे कैसे जीता है—विरक्ति से या विवेक से।

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