श्रीमद् भागवतम् भाव
भागवत कहती है , कि संसारी व्यक्ति अपने जीवन में केवल लौकिक सम्बन्धों को निभाने और उन्हें बनाए रखने में ही अपने मनुष्य जीवन की सारी स्वासों को खर्च कर देते हैं । वे भूल जाते हैं , कि उनका परमपिता परमात्मा से जो पारलौकिक सम्बन्ध है , उसकी तरफ भी हमारा ध्यान जाना चाहिए । जबकि ईश्वर से बिना कोई सम्बन्ध माने , चाहे वह भक्त और भगवान का हो , या सेवक और स्वामी का , भगवान से प्रेम होगा ही नहीं । फिर बताइये , बिना भगवत् प्रेम के उनका कल्याण कैसे होगा ? और ये लौकिक संबंध उनके क्या काम आऐ ? ये सब तो यहीं छूट जाएंगे ।
जो व्यक्ति एक बार उनकी भक्ति करके ” उनसे ” भगवान का सम्बन्ध मानकर अपनी सारी चिन्ताऐं ” उनके ” ऊपर डालकर कह देता है , कि मेरे तो सब कुछ बस वे ही हैं , मेरे सारे सम्बन्ध ” उनसे ” ही हैं , तो भगवान भी उनके इस भाव की लाज रखते हुए , उसके सारे इन्तजामों का जिम्मा अपने ऊपर ” योगक्षेम वहाम्यहम् ” ले लेते हैं , फिर चाहे वे घर में रहें , या जंगल में ।
प्रह्लादजी ने जब उनसे भक्त का सम्बन्ध मानकर , अपने ही पिता से यह कह दिया , कि दैत्यराज हाँ ! वे इस जड खम्भे में भी हैं , और वे ही मेरे स्वामी और रक्षक हैं , तो , भगवान को भी अपने भक्त के भरोसे पर खरा उतरने के लिए , उस जड खम्भे में से ही प्रगट होकर उसकी रक्षा करनी पडी , और उससे देरी के लिए क्षमा याचना भी की , सो अलग ।
( भाई रामगोपालानन्द गोयल , ” रोटीराम ” )
ऋषिकेश 9412588877 , 911832 1832
Mail – ramgopalgoyal11@gmail.com
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