शब्दों की मर्यादा
मनुष्य के शब्द ही नहीं बोलते अपितु उसका संस्कार भी बोलता है। जिस प्रकार अच्छी सुगंध अच्छे इत्र की पहचान होती है, उसी प्रकार अच्छे शब्द अच्छे मनुष्य की पहचान होते हैं।
शब्द किसी मनुष्य के संस्कारों के मूल्यांकन का सबसे प्रभावी और सटीक आधार होता है।
स्वभाव में विनम्रता, शब्दों में मिठास और कर्म में कर्तव्यनिष्ठा ये श्रेष्ठ संस्कारों के परिचायक हैं। इसका सीधा सा अर्थ यह भी हुआ कि आपकी परवरिश श्रेष्ठ संस्कारों में हुई है।
शब्द वो शस्त्र हैं कभी-कभी जीवन निकल जाने पर भी जिनका घाव नहीं भर पाता है। इसलिए जीवन में इन बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि जब भी बोला जाए, मर्यादा में रहकर ही बोला जाए ताकि किसी दूसरे के द्वारा आपके संस्कारों के ऊपर कोई प्रश्न चिह्न खड़ा न किया जा सके।
एक बात और कुशब्द प्रयोग से निशब्द हो जाना कई गुना बेहतर है। अमर्यादित बोलने की अपेक्षा मौन साध लेना उससे भी श्रेष्ठ उत्तर है।
जय श्री राधे कृष्ण
विजय शुक्ला अयोध्या
















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