पिता// पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः। पितरि प्रीतिमापन्ने सर्वाः प्रीयन्ति देवता ….परशुराम ने अपनी माँ रेणुका का सिर अपने पिता, ऋषि जमदग्नि के आदेश पर काटा और अमर हो गए

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पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः। पितरि प्रीतिमापन्ने सर्वाः प्रीयन्ति देवता॥
परशुराम ने अपनी माँ रेणुका का सिर अपने पिता, ऋषि जमदग्नि के आदेश पर काटा था, क्योंकि एक बार नदी से जल लाने में उन्हें देर हो गई थी और उनके मन में राजा चित्ररथ को देखकर क्षणिक विकार (आकर्षण) आ गया था, जिसे ऋषि जमदग्नि ने अपनी तपस्या से जान लिया था; परशुराम ने पिता की आज्ञा का पालन करना अपना परम कर्तव्य माना, जिसके बाद पिता की प्रसन्नता पर उन्हें वरदान में माँ को पुनर्जीवित करवाया.  
पूरी घटना:
देरी और मन का विचलित होना

एक दिन माता रेणुका जल लेने नदी पर गईं, जहाँ उन्होंने राजा चित्ररथ को अप्सराओं के साथ जल-क्रीड़ा करते देखा और उनके मन में क्षणिक मोह उत्पन्न हो गया, जिससे उन्हें आश्रम लौटने में देर हो गई. 
ऋषि का क्रोध: आश्रम लौटकर जब ऋषि जमदग्नि ने अपनी पत्नी की यह मानसिक स्थिति जानी, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए और अपने सभी पुत्रों को माता का वध करने का आदेश दिया. 
पुत्रों का इनकार: परशुराम के बड़े भाइयों ने माता के मोहवश पिता की आज्ञा मानने से इनकार कर दिया, जिससे क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें श्राप देकर पत्थर का बना दिया (या उनकी विचार शक्ति छीन ली). 
परशुराम का कर्तव्य पालन

अंत में, जब ऋषि ने परशुराम को आज्ञा दी, तो परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा को सर्वोपरि मानते हुए, बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया. 
वरदान और पुनर्जीवन: परशुराम की पितृभक्ति और कर्तव्यनिष्ठा देखकर ऋषि जमदग्नि अत्यंत प्रसन्न हुए. उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को कहा. परशुराम ने अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए अपनी माँ और भाइयों को पुनर्जीवित करने तथा उन्हें इस घटना का स्मरण न रहने का वरदान माँगा, जिसे पिता ने स्वीकार किया. 
यह कथा पितृभक्ति, कर्तव्य और धर्म के पालन के उच्च आदर्श को दर्शाती है, जिसमें परशुराम ने अपने पिता के आदेश का पालन कर, माता को पुनर्जीवित करवाकर, अपनी निष्ठा सिद

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