सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्। वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।
इस श्लोक में कहा गया है कि किसी भी कार्य को अचानक, बिना विचार-विमर्श के नहीं करना चाहिए। जो काम जल्दबाज़ी में, अविवेक से किया जाता है, वह प्रायः संकट और विपत्ति का कारण बन जाता है। अतः मनुष्य को चाहिए कि किसी भी निर्णय या कर्म से पहले, उसके परिणामों पर शांत मन से विचार अवश्य करे। सोच- समझकर उठाया गया कदम ही सुरक्षित और स्थिर होता है।
दूसरी बात यह है कि संसार में गुणों से प्रभावित होकर सम्पत्तियाँ, सफलताएँ और अवसर, स्वयं उसी व्यक्ति के पास आते हैं जो सोच-विचार कर कार्य करता है। विवेकशील, धैर्यशील और विचारपूर्वक निर्णय लेने वाला व्यक्ति स्वाभाविक रूप से लोगों का विश्वास जीतता है, और उसी के पास सौभाग्य एवं समृद्धि आकर्षित होती है।
इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि हर कार्य में जल्दबाज़ी नहीं, बल्कि गम्भीर चिंतन को स्थान दिया जाए।
जय श्री कृष्णा
















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