ऋषि वेदव्यास
महर्षि वेदव्यास, जो कृष्ण द्वैपायन के नाम से भी जाने जाते हैं, पराशर ऋषि और सत्यवती के पुत्र थे। उन्होंने वेदों का संपादन और वर्गीकरण किया, महाभारत, अट्ठारह पुराणों और ब्रह्मसूत्र जैसे कई अन्य ग्रंथों की रचना की और उन्हें भगवान विष्णु का एक अवतार माना जाता है।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
उनका जन्म एक द्वीप पर हुआ था, इसलिए उनका नाम द्वैपायन पड़ा।
उनका वर्ण श्याम था, जिस कारण उनका एक नाम ‘कृष्ण’ भी था।
बचपन से ही उनमें गहन चिंतन शक्ति और असाधारण बौद्धिक क्षमता थी।
प्रमुख योगदान
वेदों का संकलन: उन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित किया: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
महाकाव्य की रचना: उन्होंने महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की।
अन्य ग्रंथों की रचना: उन्होंने अट्ठारह पुराणों, ब्रह्मसूत्र और व्यास-स्मृति जैसे कई अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों की भी रचना की।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
उन्हें भगवान विष्णु का 18वां अवतार माना जाता है।
उन्हें महाभारत की घटनाओं का साक्षी भी माना जाता है और उन्होंने ही संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी, जिससे वे धृतराष्ट्र को युद्ध का हाल सुना सके।
उन्हें सात चिरंजीवी (अमर) में से एक माना जाता है।
महर्षि वेदव्यास के पिता महर्षि पराशर (ब्राह्मण) और माता सत्यवती (मल्लाह कन्या) थीं, इसलिए वे मिश्रित वर्ण के थे, लेकिन वे अपनी ज्ञान और तपस्या के कारण ब्राह्मण के रूप में पूजनीय माने जाते हैं। उन्हें ब्राह्मणों का सम्मान प्राप्त है क्योंकि उन्होंने वेदों का संकलन और विभाजन किया, जिससे उनका ज्ञान आम लोगों तक पहुँचा।
पिता: महर्षि पराशर, जो एक ब्राह्मण थे।
माता: सत्यवती, जो एक मल्लाह कन्या थीं।
वर्ण: उनके माता-पिता के वर्णों के मिश्रण के कारण, वे मिश्रित वर्ण के थे।
सम्मान: ज्ञान और वेदों के संकलन के कारण उन्हें ब्राह्मणों द्वारा भी अत्यधिक सम्मानित और पूज्य माना जाता है।
















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