इंसानों ने सबसे पहले सूर्य की पूजा की थी क्योंकि यह जीवन का मुख्य स्रोत है। प्राचीन काल में, लोग सूर्य के महत्व को समझते थे और इसे एक दैवीय शक्ति के रूप में पूजते थे, जिसने उन्हें फसल और जीवन-यापन को नियंत्रित करने वाला माना।
सूर्य की पूजा भारत में बहुत प्राचीन है, जो वेदों में दर्ज है, और इसके साक्ष्य दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और उसके बाद की मूर्तियों और सिक्कों में मिलते हैं।
जीवन का स्रोत: प्राचीन लोगों ने सूर्य की शक्ति को समझा और उसे पृथ्वी पर जीवन के स्रोत के रूप में देखा, जैसा कि विज्ञान भी पुष्टि करता है।
कृषि पर आधारित समाज: कृषि-आधारित समाजों के लिए, सूर्यदेव की पूजा करना स्वाभाविक था क्योंकि वे फसल और जीवन-यापन के लिए महत्वपूर्ण थे।
वैदिक काल से परंपरा: भारत में सूर्य पूजा की परंपरा बहुत पुरानी है और वेदों में इसका उल्लेख मिलता है।
प्राचीन प्रमाण: दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के बोधगया के महाबोधि मंदिर और पहली शताब्दी ईसा पूर्व की भजा गुफाओं में सूर्य देव की प्राचीन प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं, जो इस बात की पुष्टि करती हैं कि यह प्रथा बहुत पहले से मौजूद थी।

सूर्य पूजा के दौरान मांस-मछली का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह तामसिक भोजन माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रविवार को सूर्य देव की पूजा करते समय मांस-मछली, प्याज, लहसुन और मसूर की दाल जैसी तामसिक चीजों से परहेज करने की सलाह दी जाती है ताकि सूर्य देव की कृपा बनी रहे और उनका प्रकोप न हो।
मांस और मछली से परहेज करें: यह एक तामसिक भोजन है जो सूर्य पूजा के दौरान वर्जित माना जाता है।
अन्य वर्जित खाद्य पदार्थ: प्याज, लहसुन और मसूर की दाल का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
इसका पालन करने के लाभ: यह माना जाता है कि इन खाद्य पदार्थों से परहेज करने से सूर्य देव प्रसन्न रहते हैं और आप पर उनका सकारात्मक प्रभाव बना रहता है।
















Leave a Reply