जादू //जादू की शुरुआत — वो एक ऐसा सवाल है जो हजारों सालों से लोगों को सोच‑विचार में डालता आया है।लगभग 3000 ईसा पूर्व में प्राचीन मेसोपोटामिया, मिस्र और वैदिक भारत में जादू‑टोना, मंत्र‑जाप और औषधियों का प्रयोग होता था

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जादू की शुरुआत — वो एक ऐसा सवाल है जो हजारों सालों से लोगों को सोच‑विचार में डालता आया है।

  • पौराणिक कहानियों में: कई संस्कृतियों में कहा जाता है कि जादू को सबसे पहले देवताओं या प्राचीन ऋषियों ने सिखाया। हिंदू ग्रंथों में त्रिविक्रम और वशिष्ठ जैसे ऋषियों को “मंत्र‑विद्या” का ज्ञान था, जबकि ग्रीक मिथकों में हर्मेस को “जादूगर” कहा जाता है।
  • इतिहास में: लिखित साक्ष्य से पता चलता है कि लगभग 3000 ईसा पूर्व में प्राचीन मेसोपोटामिया, मिस्र और वैदिक भारत में जादू‑टोना, मंत्र‑जाप और औषधियों का प्रयोग होता था। ये लोग अक्सर “शमन” या “औषधि‑वेद्य” होते थे, जो प्राकृतिक तत्वों को नियंत्रित करने की कोशिश करते थे।
  • वास्तविकता में: आज‑कल “जादू” को अक्सर मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक या तकनीकी प्रभाव के रूप में समझा जाता है—जैसे कि इलेक्शन‑ट्रिक, हिप्नोसिस, या डिजिटल इफ़ेक्ट्स।

संक्षेप में, जादू का कोई एक “स्थापक” नहीं है; यह मानव की प्राकृतिक रहस्य‑भावना और अनजाने को समझने की इच्छा से धीरे‑धीरे विकसित हुआ है।
यह या तो “मंत्र योग” के अभ्यास को संदर्भित कर सकता है, जिसमें मंत्रों का जप मन को केंद्रित करने और आध्यात्मिक रूप से विकसित होने के लिए किया जाता है, या यह वैदिक और हिंदू परंपरा के इतिहास के एक विशिष्ट काल को संदर्भित कर सकता है जहाँ मंत्र महत्वपूर्ण थे। “मंत्र योग” में, मंत्र ध्वनि की शक्ति का उपयोग करके मन को शांत और केंद्रित करता है, जिससे तनाव कम होता है और एकाग्रता बढ़ती है।
मंत्र योग
‘मंत्र’ का अर्थ है “मननात् त्रायते”, जिसका अर्थ है जो मनन करके त्राता है (अर्थात बचाता है)। मंत्र योग में, मंत्रों का जप कर मन और आत्मा को नियंत्रित किया जाता है, जिससे आंतरिक शांति और चेतना का विकास होता है।
मंत्रों के लयबद्ध दोहराव से तनाव और चिंता कम होती है, एकाग्रता बढ़ती है और भावनात्मक स्थिरता आती है।
उदाहरण: गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र जैसे मंत्रों का जप बहुत शक्तिशाली माना जाता है।
वैदिक और ऐतिहासिक संदर्भ
वेद काल: मंत्रों का उपयोग वैदिक काल में शुरू हुआ, जो ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद जैसे ग्रंथों में पाया जाता है।
सत्ययुग: सत्ययुग में ‘ओंकार’ (ॐ तत् सत्) एकमात्र मंत्र माना जाता था, जो बाद में अन्य मंत्रों के रूप में विकसित हुआ।
मध्य वैदिक काल: इस काल में, मंत्रों का उपयोग विभिन्न रूपों में किया जाता था, जैसे कि ऋक् (छंद), सामन (संगीतमय मंत्र), और यजुस् (सूत्र)।
इसलिए, “मंत्र युग” एक ही अर्थ को नहीं दर्शाता, बल्कि यह मंत्रों के महत्व और उपयोग के एक व्यापक संदर्भ को बताता है, जो योग अभ्यास के रूप में भी हो सकता है और भारतीय इतिहास के एक विशिष्ट काल के रूप में भी।

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