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“व्यक्ति दो प्रकार से सोचता है। एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक।”
सोचने का सकारात्मक ढंग इस प्रकार के होता है। “ईश्वर की कृपा से मैं बड़ा भाग्यशाली हूं। मुझे बहुत अच्छे माता पिता मिले हैं, और गुरुजन भी बहुत अच्छे हैं। मुझे अच्छी अच्छी बातें सिखाते हैं।

मेरे मित्र तथा पड़ोसी भी बहुत अच्छे हैं। मुझसे बहुत प्रेम करते हैं, और मुझे सब प्रकार से सहयोग देते हैं। मुझे समाज और राज्य व्यवस्था का भी बहुत अच्छा सहयोग मिला है। ईश्वर की कृपा और इन सबके सहयोग से ही मैं अपने जीवन में इतनी उन्नति कर पाया हूं। मैं इन सब का बहुत आभारी और धन्यवादी हूं।”
“जिन लोगों का विचार उक्त प्रकार से सकारात्मक होता है, जो पॉजिटिव थिंकिंग करते हैं, सदा उत्साहित रहते हैं, आशावादी और धन्यवादी होते हैं, उन्हें कोई भी निराशावादी विचार दबा नहीं सकता। उन्हें दुखी परेशान अथवा निरुत्साहित नहीं कर सकता। वे सदा सब क्षेत्रों में आगे बढ़ते हैं। और जितना आगे बढ़ते हैं, उतने में ही संतुष्ट रहते हैं। जो वस्तुएं उन्हें नहीं मिल पाती, या कम मात्रा में मिल पाती हैं, वे उनकी कभी शिकायत नहीं करते। वे हर परिस्थिति में समायोजन Adjustment करना जानते हैं। ऐसे लोग कभी भी दुखी नहीं होते, और हर परिस्थिति में सदा सुखी प्रसन्न एवं संतुष्ट रहते हैं।”
“कुछ दूसरे लोग, जिनका चिंतन नकारात्मक होता है। वे नैगेटिव थिंकिंग करते हैं। वे हर बात में कमी ही देखते हैं। जैसे कि “यह काम नहीं हुआ, वह काम नहीं हुआ। इस प्रकार से नहीं हुआ, उस प्रकार से नहीं हुआ। ऐसा होना चाहिए था। लोग मूर्ख, दुष्ट और कामचोर हैं। कुछ काम नहीं करते। समाज और देश में बड़ी अव्यवस्था है। सड़कें अच्छी नहीं हैं। जगह-जगह पर सड़कों में गड्ढे हैं। सरकार बिल्कुल निकम्मी है। कुछ काम नहीं करती। लोगों को कितनी तकलीफ़ हो रही है, वह ज़रा भी ध्यान नहीं देती। बिजली ठीक से नहीं आती। दो दो घण्टे ग़ायब रहती है। देश और व्यापारियों को इससे कितना नुक्सान होता है! पानी ठीक से नहीं आता। एक दिन में केवल 12 घंटे ही आता है। लोग चोरबाजारी और भ्रष्टाचार करते हैं। नेता लोग खराब हैं। देश दुनियां में चोर डाकू लुटेरे हत्यारे आतंकवादी बहुत हैं, आदि आदि।” “इस प्रकार से वे नैगेटिव थिंकिंग करते हैं। कमियों को ही देखते रहते हैं। अच्छाइयों और उपलब्धियों को नहीं देखते, कि “कमियां तो सब जगह होती हैं। फिर भी इतनी कमियां होते हुए भी उन्होंने कितना धन कमाया, कितनी सुविधाएं उन्हें प्राप्त हो रही हैं। वे कितने प्रकार का सुख भोग रहे हैं!” इन बातों पर ध्यान नहीं देते। “ऐसे नकारात्मक विचार वाले लोग कभी भी जीवन में संतुष्ट एवं सुखी नहीं हो सकते। बल्कि ऐसा सोचते हुए धीरे-धीरे वे लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं। जो लोग इन बातों से सदा दुखी रहते हैं, और इन्हीं कमियों पर ही दिन भर चर्चा करते रहते हैं, ऐसे लोग अति क्रोधी अति असंतुष्ट रहते हैं। और उनमें से कुछ लोग तो पागल तक हो जाते हैं। ऐसे लोगों को कोई भी विचार या औषधि सुख पूर्वक जीवित नहीं रख पाएगी, दुखों से बचा नहीं पाएगी। अतः ऐसे ढंग से नकारात्मक विचार करना उचित नहीं है। यह बुद्धिमत्ता नहीं है।”
“ऊपर जो सोचने का सकारात्मक ढंग बताया है, उसी से सोचें, और वैसे ही कार्य करें।” “पूर्ण पुरुषार्थ करें। फिर जितना फल मिले, उतने में संतोष का पालन करें, और आगे फिर से पुरुषार्थ करें। फिर जितना फल मिले, उतने में संतुष्ट रहें।इसे सकारात्मक ढंग से सोचना और जीना कहते हैं।” “संसार में सुख से जीवन जीने की यही शैली है, और कोई नहीं।”
“यदि आप इस जीवन शैली से अपना जीवन जिएंगे, तो अनेक कमियां अव्यवस्थाएं होते हुए भी आप सुख से जीवन जी सकेंगे।”
“और जिसे 100% सब अनुकूलताएं ही चाहिएं, उसे यहां संसार में नहीं रहना चाहिए, बल्कि मोक्ष में जाना चाहिए। क्योंकि 100% अनुकूलताएं तो केवल मोक्ष में ही मिलती हैं, संसार में नहीं।”
—– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”

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