स्वरूप बोध ही मानव जीवन के सुख का मूल भी है। जिस प्रकार शीतलता जल का मूल स्वभाव है, उसी प्रकार शांती हमारा भी निज स्वरूप है। इंद्रियों की उच्छृंखलता के कारण ही हम अशांत बने रहते हैं। कपड़ों में चमक साबुन से नहीं आती, साबुन तो केवल उन पर लगी गंदगी को साफ करता है। ऐसे ही शांति भी कहीं बाहर से नहीं मिलेगी, वह तो प्राप्त ही है, बस हम ही अपने स्वरूप को विस्मृत किये हैं

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राधे – राधे ॥ आज का भगवद् चिन्तन ॥

स्वरूप बोध

स्वरूप बोध ही मानव जीवन के सुख का मूल भी है। जिस प्रकार शीतलता जल का मूल स्वभाव है, उसी प्रकार शांती हमारा भी निज स्वरूप है। इंद्रियों की उच्छृंखलता के कारण ही हम अशांत बने रहते हैं। कपड़ों में चमक साबुन से नहीं आती, साबुन तो केवल उन पर लगी गंदगी को साफ करता है। ऐसे ही शांति भी कहीं बाहर से नहीं मिलेगी, वह तो प्राप्त ही है, बस हम ही अपने स्वरूप को विस्मृत किये हैं।

औषधि केवल रोग निवृत्ति के लिए होती है, स्वास्थ्य के लिए नहीं, स्वास्थ्य तो उपलब्ध है। जिस प्रकार सड़क पर चलते समय हमें स्वयं वाहनों से अपना बचाव करना पड़ता है, उसी प्रकार कलह, क्लेश और क्रोध की स्थितियों से भी विवेकपूर्वक अपना बचाव करना होगा। एक कुशल नाविक की भाँति तेज धार में समझदारी पूर्वक जीवन रुपी नाव को शांति और आनंद के किनारे पर पहुँचाने के लिए प्रतिदिन प्रयत्नशील बने रहो।

जय श्री राधे कृष्णा जी

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