सुपथगामी बनें
जीवन में सुख की चाह तो प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है पर वह प्रयास सदैव विपरीत दिशा में करता है। यदि आप सच में सुखी होना चाहते हैं तो फिर उन रास्तों का भी त्याग करें जिनसे जीवन में दुःख आता है।
आपकी सुख की चाह तो ठीक है पर राह ठीक नहीं हैं। सुख के लिए केवल निरंतर प्रयास ही पर्याप्त नहीं है अपितु उचित दिशा में प्रयास हो, यह भी आवश्यक है।
दुःख भगवान के द्वारा दिया गया कोई दंड नहीं है, यह तो असत्य का संग देने का फल है।
आज का आदमी बड़ी दुविधा में जीवन जी रहा है। वह कभी तो राम का संग कर लेता है पर अवसर मिलते ही रावण का संग करने से भी नहीं चूकता है।
राम अर्थात् सद्गुण, सदाचार एवं रावण अर्थात् दुर्गुण, दुराचार। जैसा चुनाव करोगे वैसा ही परिणाम प्राप्त होगा। सत्य पीड़ा देगा मगर पराजय नहीं।
असत्य के मार्ग का परित्याग करके राममय जीवन जियो बस यही सीख ही मानव जीवन में सुख-शांति व मंगल की मूल है।
जय श्री राधे कृष्णा