” आज का श्रीमद् भागवत भाव “
★ भागवत कहती है , कि जैसे लोहे – लकडी की बैलगाडी को खींचने और उसे सुदूर मंजिल तक पहुंचाने के लिए दो बैलों की आवश्यकता होती है , एक बैल से उतनी लम्बी दूरी तय नहीं हो पाती , वैसे ही इस मनुष्य जीवन रूपी गाडी को इसकी मंजिल ( बैकुण्ठ ) तक पहुंचाने के लिए , दो बैल चाहिए । इसके प्रथम बैल को सांसारिकता के नाम से जाना जाता है , और दूसरे को पचास साल की उम्र के बाद आध्यात्मिकता के नाम से । जब ये दोनों बैल मिलकर इस मानव जीवन रूपी गाडी को खींचते हैं , तो जीव को परमात्म पथ पर चलने में कोई कठिनाई नहीं होती ।
★ श्री ऋषभदेवजी अपने पुत्रों से कहते हैं , कि हे पुत्रो ! इस मनुष्य जीवन के मिलने का हेतु विषय – भोग नहीं , वल्कि अंतःकरण को शुद्ध – सत्वमय करके
- नायं देहो देहभाजां नृलोके ,
कष्टान् कामानर्हते विऽभुजां ये ।
तपो दिव्यं पुत्र का येन सत्वं ,
शुध्दये धस्त्राद वृह्म सौख्यं त्वनन्तम ।। (श्रीमद् भागवत 5 / 5 /1 ) दिव्य तपोमय धर्म का पालन करते हुए , भगवदीय सुख और भगवत प्राप्ति है । विषय – भोग तो शूकर – कूकरादि योनियों में भी सुलभ हैं । इस कलियुग में भी यही दिव्य तपोमय धर्म नरसीजी , तुकारामजी , एकनाथजी , कबीरदासजी , मीराबाई आदि लाखों गृहस्थों को बैकुंठ पहुँचा चुका है । तुम तो बस अपनी मंजिल निश्चित करके ईश्वरीय चेतना को जागृत कर लो ।
★ संसार का हरेक मनुष्य , चाहे वह किसी भी उम्र का हो , यह तो जानता है , कि मैं मरूँगा तो अवश्य , और मौत कभी भी आ सकती है , लेकिन फिर भी उसकी तैयारी करता हुआ सा दिखाई नहीं देता । यहाँ तक , कि वे बूढ़े भी , जिनके कि पैर कब्र में लटके हुए हैं , वे भी कुछ और कमा लेना चाहते हैं , जबकि जानते हैं , कि इसमें से कुछ भी साथ नहीं जाने वाला । और अंत में एक दिन सब कुछ आधा – अधूरा सा छोडकर फिर इस लखचौरासी में भटकने के लिए विदा हो जाते हैं । इस भूलभुलय्या रूपी माया से न तो निर्धन बचा है , न धनपति ।
( भाई रामगोपालानन्द , गोयल ” रोटीराम ” )
ऋषिकेश 9412588877 , 91 1832 1832
Mail – ramgopalgoyal11@gmail.com
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