श्रीमद्भागवत कहती है , कि मन कुछ और चाहता है , जबकि बुद्धि कुछ और । मन का स्वभाव खुरापाती है , उसे अधिकतर खुरापात ही सूझती है । हालांकि वह जब भी कुछ गलत करने की कोशिश करता है , बुध्दि उसे रोकती है । लेकिन मन अपनी ही मनमानी करता है । उसे बुध्दि की सीख नहीं सुहाती । और एक स्थिति तो आ जाती है-भाई रामगोपालानन्द गोयल

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  • आज का श्रीमद् भागवत भाव

    ★ श्रीमद्भागवत कहती है , कि मन कुछ और चाहता है , जबकि बुद्धि कुछ और । मन का स्वभाव खुरापाती है , उसे अधिकतर खुरापात ही सूझती है । हालांकि वह जब भी कुछ गलत करने की कोशिश करता है , बुध्दि उसे रोकती है । लेकिन मन अपनी ही मनमानी करता है । उसे बुध्दि की सीख नहीं सुहाती । और एक स्थिति तो आ जाती है , कि मनुष्य खुद को असहाय सा महसूस करता है । इस हालत में कभी – कभी उसके सबके सब निर्णय उल्टे – सीधे हो जाते हैं । कभी – कभी तो बडे – बडे बुध्दिमान व्यक्ति भी मन के फंदे में फंसकर ऐसे – ऐसे काम कर बैठते हैं , जिनको सुनकर आश्चर्य मिश्रित अविश्वास सा होता है । इसलिए इस मन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ।

★ सभी मनुष्य जानते हैं , कि भगवान कर्तुम – अकर्तुम अन्यथा कर्तुम सर्व समर्थ हैं । उनके एक भृकुटी विलास से करोडों – करोडों बृह्मांडों का उदय और लय हो जाता है । सभी जीव उन्हीं की संतान हैं , लेकिन वे यह जानते ही जानते हैं , मानते नहीं । मानना कहते हैं , विश्वास को , जबकि जानना तो उनके प्रति निष्ठा हुई , जो कि कभी भी बदल सकती है । तभी तो उन परमेश्वर को वे ही भक्त पा पाते हैं , जो कि कष्ट आने पर भी यही कहते हैं , कि भगवान मेरे पिता हैं , इसलिये उनके द्वारा भेजे गए इन कष्टों में भी कोई न कोई मेरी ही भलाई होगी ।

★ जीव का विवेक यानि ज्ञान , उसके अन्तःकरण की शुद्धि के आश्रित नहीं है , बल्कि उसके अन्तःकरण की शुद्धि , विवेक के आश्रित है । विवेक अनादि और असीम है , नित्य है , जबकि उसका अन्तःकरण सीमित है । फिर नित्य को अनित्य कैसे ढक सकता है ? ये तो वह अपने अन्तःकरण की अशुद्धि के कारण इस जड़ता को इतना महत्त्व दे देता है । जीव जैसे ही जडता को छोड़कर विवेक को महत्त्व देना शुरू कर देता है , वैसे ही अन्तःकरण का मैलापन मिटना शुरू हो जाता है , उसे अलग से शुद्ध करने की कोई आवश्यकता ही नहीं रहती ।

                                             ( क्रमशः )

( भाई रामगोपालानन्द गोयल ” रोटीराम ” )
ऋषिकेश 9412588877, 911832 1832
Mail – ramgopalgoyal11@gmail.com

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