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“श्रीमद्भागवत गीता में श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए तमाम उपदेश वर्णित है। कहा जाता है ये उपदेश न केवल द्वापर युग तक मान्य माने जाते हैं बल्कि कहा जाता है कि जो व्यक्ति कलयुग में भी इन उपदेशों को समझता व अपनाता है, उसके लिए जीवन हमेशा आसान होता है। कहने का भाव है कि उसे जीवन की कोई कठिन परिस्थिति भी विचलित नहीं कर सकती। तो चलिए हमेशा की तरह जानते हैं श्रीमद्भागवत गीता का श्लोक जिसमें बताया गया है  सारी वस्तुएं परमेश्वर की है।”


श्रीमद्भागवत गीता में श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए तमाम उपदेश वर्णित है। कहा जाता है ये उपदेश न केवल द्वापर युग तक मान्य माने जाते हैं बल्कि कहा जाता है कि जो व्यक्ति कलयुग में भी इन उपदेशों को समझता व अपनाता है, उसके लिए जीवन हमेशा आसान होता है। कहने का भाव है कि उसे जीवन की कोई कठिन परिस्थिति भी विचलित नहीं कर सकती। तो चलिए हमेशा की तरह जानते हैं श्रीमद्भागवत गीता का श्लोक जिसमें बताया गया है  सारी वस्तुएं परमेश्वर की है।

तात्पर्य : श्लोक भगवत गीता के प्रयोजन को स्पष्टतया इंगित करने वाला है। भगवान की शिक्षा है कि स्वधर्म पालन के लिए सैन्य अनुशासन के सदृश कृष्णभावनाभावित होना आवश्यक है। ऐसे आदेश से कुछ कठिनाई उपस्थित हो सकती है, फिर भी कृष्ण के आश्रित होकर स्वधर्म का पालन करना ही चाहिए क्योंकि यह जीव की स्वाभाविक स्थिति है। जीव भगवान के सहयोग के बिना सुखी नहीं हो सकता क्योंकि जीव की नित्य स्वाभाविक स्थिति ऐसी है कि भगवान की इच्छाओं के अधीन रहा जाए। अत: कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध करने का इस तरह आदेश दिया मानो भगवान उसके सेनानायक हों।”
“परमेश्वर की इच्छा के लिए मनुष्य को सर्वस्व की बलि करनी होती है और साथ ही स्वामित्व जताए बिना स्वधर्म का पालन करना होता है। अर्जुन को भगवान के आदेश का मात्र पालन करना था। परमेश्वर समस्त आत्माओं के आत्मा हैं। च्निराशी: ज् का अर्थ है स्वामी के आदेशानुसार कार्य करना, किंतु फल की आशा न करना। कोषाध्यक्ष अपने स्वामी के लिए लाखों रुपए गिन सकता है किंतु इसमें से वह अपने लिए एक पैसा भी नहीं चाहता। उसी प्रकार मनुष्य को यह समझना चाहिए कि इस संसार में किसी व्यक्ति का कुछ भी नहीं है, सारी वस्तुएं परमेश्वर की हैं।”

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