वैराग्य आपके जीवन में आनंद लेेकर आता है//जब तक आपके मन में इच्छाएं हैं, तब तक आप दुखी हैं। इच्छाएं सब दुखों की मूल हैं, लेकिन यही बात हम समझ नहीं पाते हैं। जबकि वैराग्य जीवन में खुशियां लाता है। लेकिन मन इस सच को मानने को तैयार ही नहीं होता

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वैराग्य आपके जीवन में आनंद लेेकर आता है
जब तक आपके मन में इच्छाएं हैं, तब तक आप दुखी हैं। इच्छाएं सब दुखों की मूल हैं, लेकिन यही बात हम समझ नहीं पाते हैं। जबकि वैराग्य जीवन में खुशियां लाता है। लेकिन मन इस सच को मानने को तैयार ही नहीं होता। वैराग्य का मतलब उदासीनता नहीं फक्कड़पन है, जो हमारे जीवन में आनंद और शांति लेकर आता है।

समर्पण क्या है?:- इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि जब कोई इच्छा उत्पन्न हो, तो उसे दैवीय या उच्च शक्ति को अर्पित कर दें और कहें, •‘यदि यह मेरे लिए अच्छा है, तो इसे होने दें।’ और फिर इसे जाने दें। जब आप सब कुछ अर्पित कर देते हैं, तो कोई भी चीज आपको आपके केंद्र से दूर नहीं ले जा सकती।

जब तक इच्छाएं आपके मन में रहती हैं, तब तक आप पूर्ण आराम नहीं पा सकते। हर इच्छा या महत्वाकांक्षा आंख में रेत के कण की तरह है! न तो आप अपनी आंखें बंद कर सकते हैं और न ही उन्हें रेत के कण के साथ खुला रख सकते हैं। यह किसी भी तरह से असुविधाजनक है। वैराग्य इस रेत के कण को हटाता है ताकि आप अपनी आंखें स्वतंत्र रूप से खोल और बंद कर सकें! दूसरा तरीका यह है कि आप अपनी इच्छा का विस्तार करें यानी इसे इतना बड़ा कर दें कि यह आपको परेशान नहीं कर पाए। यह एक छोटा-सा रेत का कण है, जो आपकी आंखों में जलन पैदा करता है। एक बड़ा पत्थर कभी भी आपकी आंखों में नहीं जा सकता है!

यदि आपके मन में अभी, इसी क्षण कोई इच्छा आ रही हो तो आप क्या करते हैं? आप उस इच्छा को पूरा करने के लिए काम करते हैं। इसके पूरा होने के बाद क्या आप जानते हैं कि आप कहां होंगे? यह आपको उसी स्थान पर ले जाएगा, जहां आप इच्छा उत्पन्न होने से पहले थे।

तो आइए समझते हैं कि आखिर ये खोज है क्या?- एक किशोर लड़की एक महंगी पोशाक देखती है और तुरंत उससे प्यार करने लगती है। लेकिन सभी खूबसूरत चीजों की तरह, यह भी उसके खरीदने के लिए बहुत महंगा है। वह अपने पिता को पोशाक खरीदने के लिए मनाने की कोशिश करती है और उन्हें यह समझाने की हर संभव कोशिश करती है कि पोशाक की कीमत इसके लायक है और शायद इससे भी अधिक। सब कुछ होते हुए भी पिता मना कर देते हैं।

युवा लड़की इतनी परेशान हो जाती है कि वह जिस भी समारोह में जाती है, वहां उसे उस पोशाक के बिना अधूरापन महसूस होता है। जब भी वह शोरूम की खिड़की पर पोशाक देखती है तो उसका दिल अंदर से हिल जाता है। बहुत सारे आंसुओं, झगड़े और शेखी बघारने के बाद, पिता आखिरकार हार मान लेते हैं और उसके लिए पोशाक खरीद लेते हैं। लड़की खुश है। वह इसे हर संभव पार्टी और समारोह में पहनती है, लेकिन दो साल बाद वही पोशाक फेंके जा रहे कपड़ों के ढेर में पड़ी होती है। तो आप देखते हैं कि इच्छा जीवन का रूप ले लेती है और अंतत: शून्य में बदल जाती है। इच्छाओं पर भली-भांति दृष्टि डालना और यह अनुभव करना कि वे व्यर्थ हैं, परिपक्वता अथवा विवेकशीलता है।

इच्छाओं से कैसे निपटें?:- बस इच्छाओं की पूर्ति को ज्यादा तूल न दें। इससे लड़ो मत। उन पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है। इच्छाएं सामने आती हैं। उन पर टिके रहने या दिवास्वप्न देखने के बजाय, बस समर्पण कर दें। समर्पण क्या है? इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि जब कोई इच्छा उत्पन्न हो तो उसे दैवीय या उच्च शक्ति को अर्पित कर दें और कहें, •‘यदि यह मेरे लिए अच्छा है, तो इसे होने दें।’ और फिर इसे जाने दें। जब आप सब कुछ अर्पित कर देते हैं, तो कोई भी चीज आपको आपके केंद्र से दूर नहीं ले जा सकती।

जिंदगी आपको हर घटना में हार मानने की कला सिखाती है। जितना अधिक आपने जाने देना सीख लिया है, आप उतना अधिक खुश हैं और जैसे-जैसे आप आनंदित होने लगेंगे, आपको और अधिक दिया जाएगा।

परंतु समर्पण का अर्थ कर्म का अभाव नहीं है। केवल एक प्रतिज्ञा न करें और कहें, •‘ठीक है, मुझे एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी’ और इसे छोड़ दें। इसके बारे में कुछ न करें। आपको वह सब करना होगा, जो आवश्यक है। कार्य करो, समर्पण करो और मुक्त हो जाओ।

वैराग्य के साथ, आप दुनिया का खुलकर आनंद ले सकते हैं और आराम कर सकते हैं। वैराग्य आपके जीवन में बहुत आनंद ला सकता है। ऐसा मत सोचो कि वैराग्य उदासीनता की अवस्था है। वैराग्य उत्साह से भरा है। यह इच्छाओं के बोझ से मन को मुक्ति दिलाता है। मानो जब बंधन टूट जाएं, ऐसी मुक्ति का अनुभव होता है, जिसमें आप गत-आगत की चिंता से मुक्त आनंदित रहते हैं। यह जीवन में सारी खुशियां लाता है और आपके मन में एक असीम शांति और प्रफुल्लता का भाव उत्पन्न करता है।


                 

गीता उपदेश: गीता में जानें व्यक्ति कैसे जीते जी मोक्ष प्राप्त कर सकता है
हम में से कई व्यक्ति अपने कर्म के फल की चिंता पहले से ही करने लगता है. बता दें कि गीता के एक उपदेश के अनुसार ऐसे लोगों में से कम ही लोगों को मोक्ष यानि की फल की प्राप्ति होती है. आइए गीता के एक उपदेश में जानें कि कैसे व्यक्ति को जीते जी मोक्ष की प्राप्त हो सकती है.

हिंदू धर्म में श्रीमद्भगवद्गीता को सभी ग्रंथों में से एक माना जाता है. श्रीमद्भगवद्गीता का अपना ही एक महत्व है. श्रीमद्भगवद्गीता में कुल 18 अध्याय हैं जिनमें 700 श्लोक हैं. जिसे अब तक कई भाषाओं में लिखा जा चुका है. बता दें कि श्रीमद्भगवद्गीता में कई ऐसे उपदेश हैं जिनसे व्यक्ति को जीते जी ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है.

श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने विश्व रूप में प्रकट हो कर अर्जुन को गीता के द्वारा कई ऐसे उपदेशों के बारे में बताया जिसके बाद ही अर्जुन अपनों के विरोध धर्म और अधर्म की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हुए और आखिर में जीत भी हासिल किए. दरअसल आज हम गीता के उपदेशों के द्वारा यह जानेंगे कि व्यक्ति को कैसे फल की चिंता किए बिना ही कर्म पर केवल ध्यान देना चाहिए!

फल की चिंता किए बिना कैसे करें कर्म

गीता के उपदेश के अनुसार व्यक्ति अगर जीवन में सफलता हासिल करना चाहता है तो उसे फल की चिंता किए बिना ही केवल कर्म पर ध्यान देना चाहिए. व्यक्ति को कभी भी किसी कार्य को करने के लिए उसके परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए. गीता की मानें तो ऐसे ही लोगों के कदम सफलता चूमती है.

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन.

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि..

गीता के इस श्लोक के अनुसार तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी भी नहीं. तुम्हारे कर्मों का फल तुम्हारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए. गीता के इस श्लोक के अनुसार व्यक्ति को केवल और केवल अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए. बजाय इसके कि उसका परिणाम क्या होगा.

यदि हम अपने कार्यों को बिना निष्ठा भाव से सच्चे मन से करते हैं तो समाज में मान सम्मान भी हासिल होता है. यदि हम अपने कर्तव्यों को सही तरीके से निभाते हैं तो सफलता अपने आप हमारे पास खुद बा खुद चली आती है.

  हरिऊँ🙏
                

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