मानव मन की नकारात्मक ऊर्जा, जैसे क्रोध और ईर्ष्या, समस्याओं और रोगों का मूल कारण है। धर्म हमें इन प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखने और सकारात्मक कर्म करने का संदेश देते हैं। सकारात्मक विचार प्रगति लाते हैं, जबकि नकारात्मक विचार पतन की ओर ले जाते हैं। संतुलित जीवन के लिए आंतरिक ऊर्जा को सही दिशा देना आवश्यक है

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मन में उत्पन्न नकारात्मक भाव दिखते नहीं पर जीवन को निगल जाते हैं, इनसे बचें
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⭕मानव मन की नकारात्मक ऊर्जा, जैसे क्रोध और ईर्ष्या, समस्याओं और रोगों का मूल कारण है। धर्म हमें इन प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखने और सकारात्मक कर्म करने का संदेश देते हैं। सकारात्मक विचार प्रगति लाते हैं, जबकि नकारात्मक विचार पतन की ओर ले जाते हैं। संतुलित जीवन के लिए आंतरिक ऊर्जा को सही दिशा देना आवश्यक है।

मानव मन में उत्पन्न होने वाली ऋणात्मक ऊर्जा ही अधिकतर समस्याओं और रोगों की मूल जड़ है। यह नकारात्मक ऊर्जा जैसे क्रोध, अत्यधिक महत्वाकांक्षा, ईर्ष्या, अहंकार, दंभ, हिंसा, दूसरों को पीड़ा पहुंचाने की प्रवृत्ति हमारे ही विनाश का कारण बनती है। सभी धर्मों का मूल संदेश यही है कि मनुष्य अपनी ऋणात्मक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखे और जीवन में अधिक से अधिक सकारात्मक यानी धनात्मक कर्मों को अपनाए। अनुभवों से परिपक्व हर व्यक्ति यही कहेगा कि सकारात्मक विचार और कार्य आपको प्रगतिशील और सफल बनाएंगे, जबकि नकारात्मक प्रवृत्तियां धीरे-धीरे आपको पतन के रास्ते पर ले जाएंगी।

अगर जीवन को संतुलित, सुखद और समृद्ध बनाना है तो स्वयं के भीतर की ऊर्जा को पहचान कर उसे सही दिशा देना ही सबसे बड़ा धर्म है। मनुष्य के अंदर मानसिक विकारों के आने पर या मानसिक स्थिति संतुलित न होने पर उसके शरीर पर विभिन्न प्रकार के विकारों के लक्षण उत्पन्न हो जाते है। मनुष्य जैसा सोचता है, जैसा कर्म करता है वैसा ही प्रभाव उसके शरीर के विभिन्न अंगों पर पड़ता है। अगर मनुष्य के कार्य एवं मानसिक स्थिति धनात्मक हो तो शरीर के अंदर रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है और जीवन शक्ति लंबे समय तक ऊर्जावान बनी रहती है। स्वस्थ मानसिकता के अभाव में हम चाहें कितना भी अच्छा भोजन करें, कितना भी व्यायाम और शरीर की देखभाल करें हम रोग मुक्त नहीं हो सकते।

धनात्मक ऊर्जा का तात्पर्य मनुष्य के अंदर उठने वाले अच्छे भावों से है। जैसे कि दूसरों के प्रति संवेदनशीलता, प्रेम, आचार-व्यवहार में सीधापन, सत्य बोलने की आदत, जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण, व्यर्थ का घमंड न होना, हंसमुख होना इत्यादि। ऐसा देखा गया है कि अत्यधिक क्रोध और हिंसक विचारों वाले व्यक्तियों को विभिन्न प्रकार की गंभीर समस्याएं आ घेरती हैं जैसे कि अत्यधिक अम्ल बनना, रक्त का दबाव बढ़ जाना, किडनी संबंधी समस्याएं, कब्ज, यकृत में दोष आ जाना, अनिद्रा इत्यादि। व्यवसाय को लेकर अत्यधिक चिंतित रहना, जुआ, सट्टा खेलना, गलत तरीके से अर्थ कमाना इत्यादि कार्यों के कारण ब्लड-प्रेशर, त्वचा रोग, हार्ट अटैक जैसे रोग हो सकते हैं। अत्यधिक भोग और विलासितापूर्ण जीवन जीना, कर्मेन्द्रियों का इस्तेमाल न करना, सदैव आलस्यमय रहना, गरिष्ठ और विलासितापूर्ण भोजन करने से मधुमेह जैसे रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
।। जय सियाराम जी।।
।। ॐ नमः शिवाय।।

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