- आज का श्रीमद् भागवत भाव
———————– ( 30 – 7 – 25 ) - भागवत कहती है , कि ईश्वर के चरणों में प्रेम हो जाना , जप , तप , योग और साधना से बहुत ऊंची चीज है । क्योंकि ये सभी साधन उनके चरणों की प्रीति की प्राप्ति के लिए ही किये जाते हैं । और यदि वही प्राप्त हो गयी , तो समझो , अब तो वे मिल ही जाएंगे । इसी के लिए तो योगीजन स्तुतियों को माध्यम बनाते हैं , और धूनियाँ तपते हैं । लेकिन इसके लिए गोपियों जैसी अनन्यता और निश्छलता चाहिए । इसी प्रेम के बल पर तो गोपियों ने गोविंद को नाच नचाकर सदा – सदा के लिए अपना कर्जदार बना लिया , और प्रेम से व्यंग्यात्मक व कडवे वचन कह डाले ।
- कोई भी जीव बचपन से बुरा या पापी नहीं होता । कभी-कभी उसकी परिस्थिति उसे ऐसा करने को विवश कर देती हैं । इसलिए यदि वह सुधरना चाहता है , तो उसे जो हो गया , सो हो गया , अब भूल जा , यानि ” बीती ताहि विसार दे , आगे की सुधि लेहु ” बाले सिद्धांत से यह संकल्प लेकर प्रभु की शरण ले लेनी चाहिए , कि अब आगे कुछ भी गलत नहीं करूँगा , तो भगवान उसके कल्याण पथ के रास्ते अपने आप खोलते चले जाते हैं । शर्त बस एक यही है , कि संकल्प सच्चे मन से और दृढतापूर्वक होना चाहिये ।
- क्रिया एक सी होते हुए भी , अक्सर भाव की भिन्नता के कारण फल की प्राप्ति में भिन्नता आ जाती है । जैसे कि एक सैनिक जब दूसरे शत्रु देश के सैनिक को मारता है , तो उसको वीरता का पुरस्कार मिलता है , क्योंकि उसका भाव देशसेवा का है , लेकिन वही सैनिक यदि अपने ही देश के सैनिक को मार दे , तो वह हत्यारा कहलाता है , और सजा पाता है । उसी तरह भजन में भी भाव की ही प्रधानता होती है , जैसे कोई भले ही सारे दिन माला फेरे , लेकिन उसका मन यदि ” नाम ” के साथ एकरूप न होकर राग – द्वेष में फँसा हुआ है , तो उसका वह भजन , भजन न मानकर केवल टाइमपास माना जाता है । जबकि दूसरा कोई व्यक्ति भले ही ” नाम ” तो थोड़ा ही जप रहा हो , लेकिन जप निष्काम व निश्छल भाव से रहा हो , तो उसकी भावना को भगवान सच्चीभक्ति मानकर , अपने चरणों का आश्रय दे देते हैं । ( भाई रामगोपालानन्द गोयल, ” रोटीराम ” )
ऋषिकेश 9412588877,9118321832
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भागवत कहती है , कि ईश्वर के चरणों में प्रेम हो जाना , जप , तप , योग और साधना से बहुत ऊंची चीज है । क्योंकि ये सभी साधन उनके चरणों की प्रीति की प्राप्ति के लिए ही किये जाते हैं,कोई भी जीव बचपन से बुरा या पापी नहीं होता । कभी-कभी उसकी परिस्थिति उसे ऐसा करने को विवश कर देती हैं । इसलिए यदि वह सुधरना चाहता है , तो उसे जो हो गया , सो हो गया ,

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