(प्रश्न) : प्रार्थना/साधना/उपासना/आराधना/भक्ति कौन, किसके लिए, और क्या कर रहा है?
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(उत्तर) : प्रातःकाल हमारे माध्यम से भगवान स्वयं ही उठ रहे हैं। रात्री में शयन भी वे ही कर रहे थे। उठते ही वे स्वयं ही अपनी आराधना स्वयं कर रहे हैं। वे अपनी समष्टि (जो वास्तव में वे स्वयं हैं) के कल्याण के लिए स्वयं से स्वयं ही प्रार्थना कर रहे हैं। सारे संकल्प और विकल्प भी उन्हीं के हैं जो स्वयं वे ही कर रहे हैं।
शत्रु का संहार भी वे ही कर रहे हैं। उस समय भी उनके मन में कोई क्रोध और घृणा नहीं है। सिर्फ प्रेम और करुणा है।
इन पैरों से वे ही चल रहे हैं, इन हाथों से वे ही काम कर रहे हैं, इन आँखों से वे ही देख रहे है, इन कानों से वे ही सुन रहे हैं, इन नासिकाओं से वे ही साँस ले रहे हैं, वे स्वयं ही अपना सारा कार्य स्वयं ही संपादित कर रहे हैं। अपना ध्यान भी वे स्वयं ही कर रहे हैं।
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सम्पूर्ण अस्तित्व वे स्वयं हैं। मेरा कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, मेरे माध्यम से वे स्वयं ही व्यक्त हो रहे हैं। अपना नमन भी वे स्वयं ही कर रहे हैं। उनकी जय हो।
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“त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥”
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कृपा शंकर