जीवन की सुरक्षा के लिए भोजन वस्त्र मकान यान इत्यादि भौतिक वस्तुएं आवश्यक हैं। इनके बिना जीवन सुख पूर्वक नहीं चल सकता।” यह सत्य है।परंतु यह भी इतना ही सत्य है, कि “इन भौतिक पदार्थों का यदि आप अपनी आवश्यकता से अधिक संग्रह करेंगे, तो ये भौतिक पदार्थ उतना ही आपका तनाव भी बढ़ाएंगे।

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“जीवन की सुरक्षा के लिए भोजन वस्त्र मकान यान इत्यादि भौतिक वस्तुएं आवश्यक हैं। इनके बिना जीवन सुख पूर्वक नहीं चल सकता।” यह सत्य है।
परंतु यह भी इतना ही सत्य है, कि “इन भौतिक पदार्थों का यदि आप अपनी आवश्यकता से अधिक संग्रह करेंगे, तो ये भौतिक पदार्थ उतना ही आपका तनाव भी बढ़ाएंगे। इनकी सुरक्षा करने की आपकी चिन्ताएं भी उतनी ही बढ़ेंगी।” इसलिए बुद्धिमत्ता की बात यह है, कि “जितनी मात्रा में ये भौतिक वस्तुएं आपको आवश्यक हों, उतनी ही मात्रा में इनका संग्रह करें। अधिक संग्रह न करें। बाकी संतोष का पालन करें।”
अपने मन में यह सिद्धांत स्थापित करें, कि “जितनी वस्तुएं मेरे पास हैं, यदि इनसे मेरा जीवन सुख पूर्वक चल रहा है, ठीक चल रहा है, तो मुझे अधिक लोभ करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि वह लोभ मेरे दुखों को और बढ़ाएगा।”
जैसे रास्ता देखने के लिए आप को प्रकाश की आवश्यकता होती है। “दिन में सूर्य प्रकाश से आप का काम ठीक चल जाता है। रात को अंधेरा हो जाता है, तो रास्ता देखने के लिए आप स्कूटर कार आदि वाहनों के प्रकाश का प्रयोग करते हैं।” “यदि वह प्रकाश मात्रा से अधिक हो जाए, तो उससे भी कष्ट होता है। आंखें चुंधिया जाती हैं। जैसे आवश्यकता से अधिक प्रकाश आंखों को सहन नहीं होता, दुखदायक होता है। इसी प्रकार से आवश्यकता से अधिक वस्तुएं भी आप के लिए दुखदायक होंगी।”
अतः भौतिक पदार्थों की प्राप्ति अवश्य करें। उसके लिए पूरा पुरुषार्थ करें। परंतु सीमा का ध्यान भी अवश्य रखें। “जितनी मात्रा में आपको वस्तुएं प्राप्त हो जाती हैं, उतने में ही प्रसन्न रहने का अभ्यास बनाएं। यही चिंतन और व्यवहार आपके लिए सुखदायक होगा।”
—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक – दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात.”

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