संघर्ष के बिना जीवन अधूरा है, और संघर्ष के साथ ही जीवन पूर्णता को प्राप्त करता है।
जीवन में संघर्ष लगातार चलता है—-
जीवन एक अनवरत यात्रा है। यह केवल जन्म से मृत्यु तक का समय नहीं, बल्कि निरंतर बदलती परिस्थितियों और अनुभवों की श्रृंखला है। इस यात्रा की सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि इसमें संघर्ष कभी समाप्त नहीं होता। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में किसी न किसी रूप में संघर्ष करता है—कभी बाहरी परिस्थितियों से, तो कभी अपने ही विचारों और कमजोरियों से।
संघर्ष का स्वभाव और परिभाषा
संघर्ष का सामान्य अर्थ है—किसी लक्ष्य तक पहुँचने के लिए आने वाली बाधाओं का सामना करना और उन्हें पार करना। यह संघर्ष कभी स्पष्ट रूप में दिखाई देता है, जैसे गरीबी, बेरोजगारी या बीमारी; तो कभी अदृश्य रूप में, जैसे असुरक्षा की भावना, भय, या आत्म-संशय।
एक विद्यार्थी की दृष्टि से कठिन विषयों को समझना संघर्ष है, तो एक किसान के लिए प्रकृति पर निर्भर रहना संघर्ष है। इसी प्रकार गृहिणी के लिए परिवार को संभालना और नौकरीपेशा के लिए कार्यस्थल की जिम्मेदारियाँ निभाना भी संघर्ष का ही रूप है।
संघर्ष क्यों अनिवार्य है?
संघर्ष को अक्सर लोग नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं, जबकि वास्तव में यही जीवन का सबसे बड़ा शिक्षक है।
1. व्यक्तित्व निर्माण – संघर्ष व्यक्ति को मजबूत, धैर्यवान और साहसी बनाता है।
2. उन्नति का आधार – यदि जीवन में चुनौतियाँ न हों, तो हम कभी आगे बढ़ने का प्रयास ही न करें।
3. सफलता का स्वाद – कठिनाइयों से जूझकर जब सफलता मिलती है, तो उसका आनंद और संतोष कई गुना बढ़ जाता है।
संघर्ष और परिवर्तन का संबंध
जीवन में केवल एक ही चीज़ स्थायी है—परिवर्तन। आज की कठिनाई कल का अनुभव बन जाती है और कल की कठिनाई भविष्य की ताक़त। संघर्ष हमें यह सिखाता है कि कोई भी परिस्थिति स्थायी नहीं होती। जो व्यक्ति संघर्ष का सामना करता है, वही बदलती परिस्थितियों में ढलकर आगे बढ़ पाता है।
उदाहरण:
यदि हम राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जीवन को देखें, तो वे अनेक संघर्षों से गुज़रे। परंतु इन्हीं संघर्षों ने उन्हें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की शक्ति दी और वे पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बने।
मानसिक संघर्ष का महत्व
संघर्ष केवल बाहरी समस्याओं से नहीं होता। कई बार सबसे बड़ा युद्ध हमारे मन के भीतर चलता है। आलस्य, भय, नकारात्मक सोच, ईर्ष्या, असफलता का डर—ये सब मानसिक संघर्ष हैं।
जो व्यक्ति अपने आंतरिक संघर्षों पर विजय पा लेता है, उसके लिए बाहरी कठिनाइयाँ उतनी बड़ी नहीं रह जातीं। यही कारण है कि सफलता पाने के लिए सबसे पहले मानसिक शक्ति का विकास आवश्यक है।
उदाहरण:-
स्वामी विवेकानंद ने कहा था—“उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक मत रुको।” यह वाक्य इसी मानसिक संघर्ष पर विजय पाने की प्रेरणा देता है।
सामाजिक और आर्थिक संघर्ष
समाज में भी संघर्ष निरंतर चलता है। गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और भेदभाव जैसी समस्याएँ सामाजिक संघर्ष हैं। जब कोई व्यक्ति अथवा समूह इनसे जूझकर सकारात्मक परिवर्तन लाता है, तभी समाज आगे बढ़ता है। आर्थिक दृष्टि से देखें तो व्यापार, रोज़गार और जीवनयापन के साधन जुटाना भी सतत संघर्ष का ही हिस्सा है।
संघर्ष से मिलने वाली सीख
संघर्ष हमें तीन सबसे बड़ी सीख देता है :—
1. धैर्य रखना – कठिनाइयाँ अस्थायी हैं।
2. कठोर परिश्रम – बिना प्रयास के कोई भी मंज़िल हासिल नहीं होती।
3. आत्मविश्वास – हर संघर्ष के बाद व्यक्ति पहले से कहीं अधिक आत्मविश्वासी बनता है।
जीवन में संघर्ष कभी समाप्त नहीं होता। यह शैशवावस्था से प्रारंभ होकर वृद्धावस्था तक चलता रहता है। बचपन में शिक्षा का संघर्ष, युवावस्था में करियर और रिश्तों का संघर्ष, और वृद्धावस्था में स्वास्थ्य का संघर्ष—हर अवस्था में यह हमारा साथी बना रहता है।
संघर्ष से डरने के बजाय यदि हम उसे स्वीकार करें और सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें, तो यह हमें निरंतर आगे बढ़ाता है। वास्तव में संघर्ष ही जीवन को अर्थ देता है और हमें निरंतर नया सीखने, बदलने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
इसलिए कहा गया है—
“संघर्ष के बिना जीवन अधूरा है, और संघर्ष के साथ ही जीवन पूर्णता को प्राप्त करता है।”
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