एकेनापि सुपुत्रेण विद्यायुक्ते च साधुना।
आह्लादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी॥
भावार्थ : जिस प्रकार अकेला चन्द्रमा रात की शोभा बढ़ा देता है, ठीक उसी प्रकार एक ही विद्वान -सज्जन पुत्र कुल को आह्लादित करता है ।
किं जातैर्बहुभिः पुत्रैः शोकसन्तापकारकैः।
वरमेकः कुलावल्भबो यत्र विश्राम्यते कुलम्॥
भावार्थ : शौक और सन्ताप उत्पन करने वाले अनेक पुत्रों के पैदा होने से क्या लाभ कुल को सहारा देनेवाले एक ही पुत्र श्रेठ है, जिसके सहारे सारा कुल विश्राम करता है ।
नव भोर वन्दनम्
आपका दिन शुभ और मंगलमयपूर्ण हो ऐसी ईश्वर से मेरी प्रार्थना है।
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