जिसे हम ढूँढ़ रहे थे, वे तो हम स्वयं हैं —एक गहन अभीप्सा हो, प्रचंड इच्छा शक्ति हो, और ह्रदय में परम प्रेम हो, तो परमात्मा को पाने से कोई भी विक्षेप या आवरण की मायावी शक्ति नहीं रोक सकती

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जिसे हम ढूँढ़ रहे थे, वे तो हम स्वयं हैं —
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“एक गहन अभीप्सा हो, प्रचंड इच्छा शक्ति हो, और ह्रदय में परम प्रेम हो, तो परमात्मा को पाने से कोई भी विक्षेप या आवरण की मायावी शक्ति नहीं रोक सकती। जो सबके हृदय में हैं, उनकी प्राप्ति दुर्लभ नहीं हो सकती।”
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हम यह देह नहीं, सर्वव्यापी शाश्वत आत्मा हैं जो परमात्मा के साथ एक हैं। जब परमात्मा ही हमारा वास्तविक रूप है, तब पाने के लिए बाकी क्या रह गया है? सब कुछ तो पा लिया है। दिन-रात अपने सर्वव्यापी परमात्म रूप का चिंतन करो। जिस खजाने को इस सृष्टि में ढूँढ रहे हैं, वह खज़ाना तो हम स्वयं हैं। जिस आनंद को खोज रहे हैं, वह आनंद भी हम स्वयं हैं।
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जल की एक बूंद महासागर की विराट जलराशि में विलीन होकर स्वयं महासागर हो गई है। परमात्मा की विराट अनंतता में विलीन एक शाश्वत आत्मा स्वयं को कैसे व कहाँ ढूँढे? परमात्मा के सिवाय कोई अन्य अस्तित्व नहीं है।
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“मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किएँ जोग तप ग्यान बिरागा॥”
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ मई २०१९

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