गुरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य द्वारा खाया हुआ भोजन कैसे पचता है?
===============================
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
〰️🌼〰️〰️〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️〰️🌼〰️〰️〰️🌼〰️
भगवत गीता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के द्वारा ही सभी मनुष्यों का भोजन पचाया जाता है.
गुरुड़ पुराण के अनुसार प्रत्येक प्राणी के शरीर में दस प्रकार की वायु विद्यमान रहती है
प्राणवायु, अपानवायु, समानवायु, उदानवायु, व्यानवायु,नागवायु, कुर्मवायु, कृकलवायु, देवदत्तवायु, और धनंजयवायु
ह्रदय में प्राणवायु, गुदा में अपानवायु, नाभि मंडल में समानवायु, कंठ (गले) में उदानवायु, और संपूर्ण शरीर में व्यान वायु व्याप्त रहती है.
डकार लेने में नागवायु का प्रयोग होता है, कृकल वायु के कारण भूख लगती है, जंभाई लेने में देवदत्तवायु का प्रयोग होता है, उन्मीलन कुर्मवायु का प्रयोग बताएं होता है सर्वव्यापी धनंजय वायु मृत्यु के पश्चात भी मृत शरीर को नहीं छोड़ता है ग्रास के रूप में खाया गया अन्न सभी प्राणियों के शरीर को पुष्ट करता है.
उस पुष्टिकारक अन्न के सारांशभूत रस को व्यान नाम का वायु शरीर की सभी नाड़ियों में पहुंचाता है उस वायु के द्वारा भुक्त (खाया हुआ) आहार दो भागों में विभक्त कर दिया जाता है गुदाभाग में प्रविष्ट होकर सम्यक रूप से अन्न और जल को पृथक पृथक करके अग्नि के ऊपर जल और जल के ऊपर अन्न को करके अग्नि के नीचे वह प्राणवायु स्वत: स्थित होकर उस अग्नि को धीरे-धीरे धौंकता है उसके द्वारा धौंके जाने पर मल और रस को पृथक-पृथक कर देता है तब वह व्यान वायु उस रस को संपूर्ण शरीर में पहुंचाता है शरीर से पृथक किया गया मल शरीर के कान आंख नाक आदि 12 छिदों से बाहर निकलता है जैसे सूर्य के प्रकाश प्राप्त करके प्राणी अपने अपने कर्मों में प्रवृत्त होते हैं उसी प्रकार से चैतन्यांश से सत्ता प्राप्त करके यह सभी वायु अपने अपने कर्म में प्रवृत होते हैं.
भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता में कहते हैं:-
मैं ही पाचन-अग्नि के रूप में समस्त जीवो के शरीर में स्थित रहता हूं मैं ही प्राण वायु और अपानवायु को संतुलित रखते हुए चार प्रकार के (चबाने वाले चूसने वाले चाटने वाले और पीने वाले)अन्नों को पचाता हूं.
( भगवत गीता 15.14)
भगवान श्री विष्णु हरि जी ने कश्यप मुनि के पुत्र गुरुड़ को गुरुड़ पुराण सुनाई थी और भगवान श्री कृष्ण विष्णु जी के आठवें अवतार हैं।
Leave a Reply