गीता कहती है , कि जीव स्वयं ही तो अपना मित्र है , और स्वयं ही अपना शत्रु । यदि वह स्वयं से दुश्मनी निभाना छोडकर मित्रता निभाना सीख जाय , तो उसके कल्याण में कोई बाधा है ही नहीं

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  • आज का श्रीमद् भागवत भाव
    ** ( 10 – 5 – 25)
    ★ भागवत कहती है , कि संसार में जो भी मनुष्य जन्म लेकर आता है , उसमें इन तीन गुणों ( सात्विक – राजस – तामस ) का समावेश तो होता ही है , क्योंकि जो इन गुणों से असंग हो गया , वह तो मुक्त हो ही जाता है । जन्म लेने वाले व्यक्ति में पूर्वजन्म में जिस गुण की प्रधानता अधिक रही होगी , वह उसके अब के कर्मों से मालुम पड जाएगा । अगर वह सत्वगुणी की है , तो वह पूर्व में धर्म परायण और विवेकी रहा होगा । अगर रजोगुणी है , तो वह पूर्व में लोभादिक कर्मो में अधिक प्रवर्त्त , और अहंकारी रहा होगा । लेकिन अगर तमोगुणी है , तो वह पूर्व में प्रमादी और अधिक विषयी – भोगी रहा होगा ।

★ यदि किसी व्यक्ति को कांटों से भरे जंगल में छोड दिया जाए , और वह उन कांटों से बचने के लिए उन काँटों को हटाना चाहे , तो क्या वह जंगल के सारे कांटों को हटा पाएगा ? तो जबाब होगा , नहीं । लेकिन यदि वही व्यक्ति अपने पैरों में केवल जूते पहन ले , तो उसे कांटों से बचने के लिए उन्हें हटाने की कोई आवश्यकता ही नहीं है । उसी तरह जीवन में यदि किसी को सच्ची शांति व सुख की चाहना है , तो वह केवल अपने प्रारब्ध को याद करके सन्तोष रूपी पादुका अपने हृदय में धारण करले , इतने मात्र से ही उसे शांति मिल जाएगी ।

★ गीता कहती है , कि जीव स्वयं ही तो अपना मित्र है , और स्वयं ही अपना शत्रु । यदि वह स्वयं से दुश्मनी निभाना छोडकर मित्रता निभाना सीख जाय , तो उसके कल्याण में कोई बाधा है ही नहीं ।

  • उद्धरेदात्मानम् नात्मानम वसादयेत ।
    आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।। गीता ( 6/5 ) आवश्यकता बस भगवान श्रीकृष्ण की वाणी को हृदयंगम करके अपने हित और अनहित को पहचानने की है । ( क्रमशः ) ( भाई रामगोपालानन्द गोयल ” रोटीराम ” )
    ऋषिकेश 91,1832 ,1832 ,9412588877
    Mail – ramgopalgoyal11@gmail.com

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