ऋषि पंचमी व्रत माहात्म्य//हर साल भादो मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाता है. ऐसी मान्यताएं हैं कि इस दिन व्रत-उपासना करने से जाने-अनजाने में हुई गलतियों का प्रायश्चित किया जा सकता है.।

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ऋषि पंचमी व्रत माहात्म्य व्रत कथा एवं विधि

(ऋषियों के १०८ नाम)

ऋषि पंचमी व्रत माहात्म्य व्रत कथा एवं विधि
भाद्रपद शुक्ल पंचमी
28/08/2025 गुरुवार

ऋषि पंचमी तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को 28 अगस्त गुरुवार 2025 को मनाई जाएगी।

ऋषि पंचमी व्रत माहात्म्य

हर साल भादो मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाता है. ऐसी मान्यताएं हैं कि इस दिन व्रत-उपासना करने से जाने-अनजाने में हुई गलतियों का प्रायश्चित किया जा सकता है.।
ऋषि पंचमी कोई त्योहार नहीं है, बल्कि महिलाओं द्वारा सप्त ऋषियों यानी सात ऋषियों को श्रद्धांजलि देने और रजस्वला दोष से शुद्ध होने के लिए रखा जाने वाला एक उपवास दिवस है।ऋषि पंचमी का व्रत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है। कहते है जो महिला इस व्रत को विधि विधान करती है उसे भयंकर से भयंकर दोषों तक से मुक्ति मिलती है।
भगवान ब्रह्मा ने इस व्रत को कलयुग में सभी पापों का नाश करने वाला व्रत बताया है। विशेष रूप से महिलाएं इस व्रत का पालन करती हैं। पुराने वैदिक काल के समय में महिलाओं को माहवारी के समय पूजा-अराधना करने के कई नियम बताए गए थे और कहा जाता था कि जो महिला इन नियमों का पालन नहीं करती है उसे दोष लगता है।

इस संबंध में पुराणो में एक कथा प्रचलित है
जो कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को सुनायी
। जब इन्द्र ने त्वष्टा के पुत्र वृत्रासुर का वध किया तो उन्हें ब्रह्महत्या का अपराध लगा। उस पाप को चार स्थानों में बाँटा गया, यथा १.अग्नि (धूम से मिश्रित प्रथम ज्वाला में),
२.नदियाँ (वर्षाकाल के पंकिल जल में),
३..पर्वत (जहाँ गोंद वाले वृक्ष उगते हैं) में तथा
४.. स्त्रियों को (रजस्वला) में। अत: मासिक धर्म के समय लगे पाप से छुटकारा पाने के लिए यह व्रत स्त्रियों द्वारा किया जाना चाहिए।
इस व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। इसके करने से सभी पापों एवं तीनों प्रकार के दु:खों से छुटकारा मिलता है तथा सौभाग्य की वृद्धि होती है। जब नारी इसे सम्पादित करती है तो उसे आनन्द, सुख, शान्ति एवं सौन्दर्य, तथा पुत्रों एवं पौत्रों की प्राप्ति होती है।।

👉🍁 यद्यपि कथा से पता चलता है कि पति पत्नी दोनों मिलकर गृहस्थ जीवन में अनजाने में अपवित्र अवस्था में
पवित्र वस्तुओं को छूने और अन्य कामजनित दोषों के निवारण हेतु यह व्रत पूजा करते हैं।
जो गुरु दीक्षित हो उन्हें अपने गुरु का भी स्मरण आज के
दिन करना चाहिए।

👉🍁ऋषि पंचमी व्रत विधि 🍁
ऋषि पंचमी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके हल्के रंग के वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद लकड़ी की चौकी पर सप्त ऋषियों की फोटो लगाएं अथवा सात पान के पत्तों पर सफेद चंदन से ऋषियों की आकृति बनाकर पूजा करें। भगवान
शिव पार्वती गणेश की भी पूजा करें
और वहीं पर एक जल से भरा कलश भी रखें। इसके बाद धूप दीप से सप्त ऋषियों की विधि विधान पूजा करें। उन्हें भोग लगाएं। व्रत की कथा सुनें। फिर अपने द्वारा जाने अनजाने में हुई गलतियों की मांफी मांगे। अंत में आरती करके प्रसाद सभी में बांट दें। फिर अपने घर के बड़े लोगों के पैर छुएं। इसके बाद पूरे दिन फलाहार व्रत रखें। फिर रात में भोजन करके अपना व्रत खोल लें। इस बात का ध्यान रखें कि इस दिन हल का बोया कोई भी अनाज नहीं खाना चाहिए। आप केवल पसई धान का भी सेवन कर सकते हैं। कई जगह ये व्रत दोपहर तक ही रखा जाता है।
कलश आदि पूजन सामग्री को मंदिर में या किसी ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए।
संभव हो तो पूजन के पश्चात् एक पुरोहित या साधु को भोजन करवाये अथवा मंदिर में या किसी पुरोहित को कुछ
दान दें ।

👉🍁ऋषि पंचमी के व्रत में क्या खाना चाहिए ।
ऋषि पंचमी के दिन साठी का चावल खाया जाता है जिसे मोरधन भी कहते हैं। इसके अलावा इस दिन दही खाने की भी परंपरा है। हल से जुते अन्न का सेवन इस व्रत में न करें और न ही नमक खाएं। और इस दिन गाय का दूध भी न पीएं उसकी जगह भैंस के दूध का उपयोग करें। इस दिन पूजा के बाद
भैंस के दूध और पंचमेवा से बनी खीर बिशेष रूप से खाई जाती है।
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गणेश स्तुति
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय
लंबोदराय सकलाय जगद्धिताय।
नागाननाय श्रूती यज्ञविभूषिताय
गौरिसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।

ऋषि पंचमी पूजा मंत्र

  1. कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
    जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
    दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥
  2. गृह्णन्त्वर्ध्य मया दत्तं तुष्टा भवत मे सदा।

👉🍁सप्तऋषियों के नाम ये हैं:👇
कश्यप,अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ
और अरूंधति (वशिष्ठ की पत्नी)
आकाश में सप्तर्षि मंडल के साथ अरूंधति भी एक नक्षत्र तारे के रूप दिखाई देती है जो कि सप्तश्रृषियों की शक्ति रूपा है
सप्तश्रृषियों के साथ इनका पूजन किया जाता है।

अब सप्तऋषि के आवाहन हेतु ध्यान मंत्र पढकर पुष्प अर्पण करेंगे
मूर्तं ब्रह्मण्यदेवस्य ब्रह्मणस्तेज उत्तमं
सूर्यकोटिप्रतीकाशं ऋषीवृंदं विचिंतये
श्री अरुंधती सहित कश्यपादि सप्तऋषिभ्यो नम: ध्यायामि।

अब सप्तऋषि मे से प्रत्येक ऋषि का ध्यान मंत्र पढकर उनका आवाहन करे और पुष्प अक्षत अर्पण करते जायेंगे

🍁1) कश्यप ऋषि :-
ॐ कश्यपाय ऋषये नमः।
ॐ कश्यपाय विद्महे देवदनुजपितामहाय धीमहि। तन्नो ऋषिः प्रचोदयात्।
कश्यप: सर्वलोकेश: सर्वदेवेषु संस्थित: !
नराणां पापनाशाय ऋषीरुपेण तिष्ठति !!
श्री कश्यपाय नम: ! कश्यपं आवाहयामि।

🍁2) अत्रि ऋषि :—
ॐ अत्रि ऋषये नमः
ॐ अनसुईया पतये च विदमहे
दत्तात्रेय जनकाय धीमहि
तन्नो अत्रि प्रचोदयात्।
अत्रये च नमस्तुभ्यं सर्वभूतहितैषिणे !
तपोरुपाय सत्याय ब्रह्मणेsमिततेजसे !!
श्री अत्रये नम: ! अत्रिं आवाहयामि।

🍁3) भारद्वाज ऋषि :–
ॐ भारद्वाज ऋषये नमः।
ॐ भारद्वाजाय विद्महे विमानशास्त्रप्रवर्तकाय धीमहि।
तन्नो ऋषिः प्रचोदयात्।
भारद्वाज नमस्तुभ्यं सदाध्यानपरायण !
महाजटिल धर्मात्मा पापं हरतु मे सदा !!
श्री भारद्वाजाय नम: ! भारद्वाजं आवाहयामि।

🍁4) विश्वामित्र ऋषि —
ॐ विश्वामित्र ऋषये नमः।
ॐ गाधिपुत्राय विद्महे गायत्रीमन्त्रप्रवर्तकाय धीमहि। तन्नो विश्वामित्रः प्रचोदयात्।
विश्वामित्र नमस्तुभ्यं बलिं मखमहाव्रतं !
अध्यक्षींकृत गायत्री तपोरुपेण संस्थितं !!
श्री विश्वामित्राय नम: ! विश्वामित्रं आवाहयामि।

🍁5) गौतम ऋषि—
ॐ गौतम ऋषये नमः।
ॐ गौतमाय विद्महे, त्रयम्बकम् ज्योतिर्लिंग अर्चकाय धीमहि, तन्नो ऋषिः प्रचोदयात्।
गौतम: सर्वभूतानां ऋषीणां च महाप्रिय:!
श्रौतानां कर्मणां चैव संप्रदायप्रवर्तक: !!
श्री गौतमाय नम: ! गौतमं आवाहयामि।

🍁6) जमदग्नी ऋषि :—
ॐ जमदग्नि ऋषये नमः
ॐ रेणुका पतये च विदमहे, परशुराम जनकाय धीमहि, तन्नो जमदग्नि प्रचोदयात्।
जमदग्निर्महातेजास्तपसा ज्वलितप्रभ: !
लोकेषु सर्वसिद्धर्थ्यं सर्वपापनिवर्तक: !!
श्री जमदग्नये नम: ! जमदग्निं आवाहयामि।

🍁7) वसिष्ठ ऋषि —
ॐ वशिष्ठ ऋषये नमः।
ॐ अरूंधति पतये च विदमहे सुर्यवंश कुलपुरोहिताय धीमहि तन्नो वशिष्ठ प्रचोदयात्।
नमस्तुभ्यं वसिष्ठाय लोकानां वरदाय च !
सर्वपापप्रणाशाय सूर्यान्वयहितैषिणे !!
श्री वसिष्ठाय नम: ! वसिष्ठं आवाहयामि।

🍁8) अरुंधती– :(सप्तश्रृषियों की शक्ति रूपा)-
ॐ अरूंधत्यै वशिष्ठ पत्नयै नमः।
ॐ वशिष्ठ पत्न्यै च विदमहे महापतिव्रताय धीमहि। तन्नो अरुंधती प्रचोदयात्।
अरुंधति नमस्तुभ्यं महापापप्रणाशिनि !
पतिव्रतानां सर्वासां धर्मशीलप्रवर्तके !!
श्री अरुंधत्यै नम: ! अरुंधती आवाहयामि।

ऋग्यजु:सामवेदानां स्वरुपेभ्यो नमो नम:।
पुराणपुरुषेभ्यो हि देवर्षिभ्यो नमो नम:।
लोकानां तुष्टिकर्तारो युयं सर्वे तपोधना: !
नमो वो धर्मविज्ञेभ्यो महर्षिभ्यो नमो नम: !!
श्री अरुंधति सहित कश्यपादि सप्तऋषीभ्यो नम: !!
पंचोपचार पूजनं समर्पयामि !!

👉🍁सप्तऋषि मंत्र 👇
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं सप्तऋषिभ्यः ब्रह्मवर्चसम् ऐं ह्रीं श्रीं ॐ

ॐ सप्त ऋषये च विदमहे,
ब्रह्मज्ञान रूपाय धीमहि,
तन्नो ऋषि मंडल प्रचोदयात्

सप्त ऋषियों की कृपा प्राप्ति हेतु इन मंत्रों का १०८ बार या यथासंभव जप करें।

🍁(यदि कोई साधक हो तो इस केवल उपरोक्त मंत्र का अधिकाधिक जाप मात्र (जैसे- २१, ५१,१०१ माला) से संपूर्ण व्रत पूजन का फल प्राप्त कर सकता है )

🍁🍁🍁ऋषि पंचमी व्रत : 🍁🍁🍁
(पौराणिक कथा)

एक समय राजा सिताश्व धर्म का अर्थ जानने की इच्छा से ब्रह्मा जी के पास गए और उनके चरणों में शीश नवाकर बोले- हे आदिदेव! आप समस्त धर्मों के प्रवर्तक और गुढ़ धर्मों को जानने वाले हैं। आपके श्री मुख से धर्म चर्चा श्रवण कर मन को आत्मिक शांति मिलती है। भगवान के चरण कमलों में प्रीति बढ़ती है। वैसे तो आपने मुझे नाना प्रकार के व्रतों के बारे में उपदेश दिए हैं। अब मैं आपके मुखारविन्द से उस श्रेष्ठ व्रत को सुनने की अभिलाषा रखता हूं, जिसके करने से प्राणियों के समस्त पापों का नाश हो जाता है।

राजा के वचन को सुन कर ब्रह्माजी ने कहा- हे श्रेष्ठ, तुम्हारा प्रश्न अति उत्तम और धर्म में प्रीति बढ़ाने वाला है। मैं तुमको समस्त पापों को नष्ट करने वाला सर्वोत्तम व्रत के बारे में बताता हूं। यह व्रत ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को करने वाले सभी स्त्री पुरुष प्राणी अपने समस्त पापों से सहज छुटकारा पा लेता है।
इस संबंध में दो कथाएं प्रचलित हैं वह सुनिए

👉🍁🍁ऋषि पंचमी की व्रतकथा-1🍁🍁
विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिसका नाम सुशीला था। उस ब्राह्मण के एक पुत्र तथा एक पुत्री दो संतान थी। विवाह योग्य होने पर उसने समान कुलशील वर के साथ कन्या का विवाह कर दिया। दैवयोग से कुछ दिनों बाद वह विधवा हो गई। दुखी ब्राह्मण दम्पति कन्या सहित गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे।

एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि उसका शरीर कीड़ों से भर गया। कन्या ने सारी बात मां से कही। मां ने पति से सब कहते हुए पूछा- प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है?

उत्तंक ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगाकर बताया- पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी। इसने रजस्वला होते ही बर्तन छू दिए थे। इस जन्म में भी इसने लोगों की देखा-देखी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया। इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़े हैं।

धर्म-शास्त्रों की मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। वह चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है। यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करें तो इसके सारे दुख दूर हो जाएंगे और अगले जन्म में अटल सौभाग्य प्राप्त करेगी।

पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया। व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई। अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग मिला।

👉🍁🌷ऋषि पंचमी की व्रतकथा-2🍁🍁

सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नामक राजा हुए थे। वह ऋषियों के समान थे। उन्हीं के राज में एक कृषक सुमित्र था। उसकी पत्नी जयश्री अत्यंत पतिव्रता थी।
एक समय वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेती के कामों में लगी हुई थी, तो वह रजस्वला हो गई। उसको रजस्वला होने का पता लग गया फिर भी वह घर के कामों में लगी रही। कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए। जयश्री तो कुतिया बनीं और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने के कारण बैल की योनी मिली, क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का कोई अपराध नहीं था।
इसी कारण इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा। वे दोनों कुतिया और बैल के रूप में उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे। धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार करता था। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मणों को भोजन के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए।
जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने रसोई की खीर के बर्तन में विष वमन कर दिया। कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से सब देख रही थी। पुत्र की बहू के आने पर उसने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया। सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुतिया का यह कृत्य देखा न गया और उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल कर कुतिया को मारी।
बेचारी कुतिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगी। चौके में जो झूठन आदि बची रहती थी, वह सब सुचित्र की बहू उस कुतिया को डाल देती थी, लेकिन क्रोध के कारण उसने वह भी बाहर फिकवा दी। सब खाने का सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा खाना बना कर ब्राह्मणों को खिलाया।
रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास आकर बोली, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं। वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला। सांप के विष वाले खीर के बर्तन को अनेक ब्रह्म हत्या के भय से छूकर उनके न खाने योग्य कर दिया था। इसी कारण उसकी बहू ने मुझे मारा और खाने को कुछ भी नहीं दिया।
तब वह बैल बोला, हे भद्रे! तेरे पापों के कारण तो मैं भी इस योनी में आ पड़ा हूं और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है। आज मैं भी खेत में दिनभर हल में जुता रहा। मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत। मुझे इस प्रकार कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया।

अपने माता-पिता की इन बातों को सुचित्र सुन रहा था, उसने उसी समय दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उनके दुख से दुखी होकर वन की ओर चला गया। वन में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता किन कर्मों के कारण इन नीची योनियों को प्राप्त हुए हैं और अब किस प्रकार से इनको छुटकारा मिल सकता है। तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नीसहित ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो तथा उसका फल अपने माता-पिता को दो।
भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी कपड़े पहनकर अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजन करना। इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नीसहित विधि-विधान से पूजन व्रत किया। उसके पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूट गए।
(पति पत्नी मिलकर भी सभी दोषों के निवारण हेतु यह व्रत पूजा कर सकते हैं।)
इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है।
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👉🍁🍁ऋषि पंचमी आरती🍁🍁
श्री हरि हर गुरु गणपति , सबहु धरि ध्यान।
श्रीसप्त ऋषि मंडल , श्री अरूंधति सहित करहुँ बखान।।

ॐ जय शिव योगी जय सप्त ऋषि वृंद
ॐ जय शिव योगी, अनंत तत्त्व स्वरूप।
ॐ सप्त ऋषि संग विराजे, अरुंधती सुशुभ्र रूप।
ॐ वन में ध्येय समाधि, ध्यान में परम शांत।
ॐ सत्य, ज्ञान और शक्ति दें, हरि रूप महांत।

ॐ शिवाय नमः, ऋषिभ्यो नमः सदा।
ॐ सर्व बाधा नाशक, मंगलकारी महा देव।
ॐ अद्भुत योग-साधना, जीवन में प्रकाश करे।
ॐ जय आदियोगी शिव, जय सप्त ऋषि वृंद।।

👉(इसके बाद भगवान शिव की आरती पढ़ें)
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🍁🍁🍁ऋष्यष्टोत्तरशतनामानि 🍁🍁🍁🍁
(ऋषियों के १०८ नाम)

        ॥ श्रीः ॥

ॐ ब्रह्मर्षिभ्यो नमः ।
ॐ वेदविद्भ्यो नमः ।
ॐ तपस्विभ्यो नमः ।
ॐ महात्मभ्यो नमः ।
ॐ मान्येभ्यो नमः । ५।
ॐ ब्रह्मचर्यरतेभ्यो नमः ।
ॐ सिद्धेभ्यो नमः ।
ॐ कर्मठेभ्यो नमः ।
ॐ योगिभ्यो नमः ।
ॐ अग्निहोत्रपरायणेभ्यो नमः । १०।
ॐ सत्यव्रतेभ्यो नमः ।
ॐ धर्मात्मभ्यो नमः ।
ॐ नियताशिभ्यो नमः ।
ॐ ब्रह्मण्येभ्यो नमः ।
ॐ ब्रह्मास्त्रविद्भ्यो नमः । १५।
ॐ ब्रह्मदण्डधरेभ्यो नमः ।
ॐ ब्रह्मशीर्षविद्भ्यो नमः ।
ॐ गायत्रीसिद्धेभ्यो नमः ।
ॐ सावित्रीसिद्धेभ्यो नमः ।
ॐ सरस्वतीसिद्धेभ्यो नमः । २०।
ॐ यजमानेभ्यो नमः ।
ॐ याजकेभ्यो नमः ।
ॐ ऋत्विग्भ्यो नमः ।
ॐ अध्वर्युभ्यो नमः ।
ॐ यज्वभ्यो नमः । २५।
ॐ यज्ञदीक्षितेभ्यो नमः ।
ॐ पूतेभ्यो नमः ।
ॐ पुरातनेभ्यो नमः ।
ॐ सृष्टिकर्तृभ्यो नमः ।
ॐ स्थितिकर्तृभ्यो नमः । ३०।
ॐ लयकर्तृभ्यो नमः ।
ॐ जपकर्तृभ्यो नमः ।
ॐ होतृभ्यो नमः ।
ॐ प्रस्तोतृभ्यो नमः ।
ॐ प्रतिहर्तृभ्यो नमः । ३५।
ॐ उद्गातृभ्यो नमः ।
ॐ धर्मप्रवर्तकेभ्यो नमः ।
ॐ आचारप्रवर्तकेभ्यो नमः ।
ॐ संप्रदायप्रवर्तकेभ्यो नमः ।
ॐ अनुशासितृभ्यो नमः । ४०।
ॐ वेदवेदान्तपारगेभ्यो नमः ।
ॐ वेदाङ्गप्रचारकेभ्यो नमः ।
ॐ लोकशिक्षकेभ्यो नमः ।
ॐ शापानुग्रहशक्तेभ्यो नमः ।
ॐ स्वतन्त्रशक्तेभ्यो नमः । ४५।
ॐ स्वाधीनचित्तेभ्यो नमः ।
ॐ स्वरूपसुखिभ्यो नमः ।
ॐ प्रवृत्तिधर्मपालकेभ्यो नमः ।
ॐ निवृत्तिधर्मदर्शकेभ्यो नमः ।
ॐ भगवत्प्रसादिभ्यो नमः । ५०।
ॐ देवगुरुभ्यो नमः ।
ॐ लोकगुरुभ्यो नमः ।
ॐ सर्ववन्द्येभ्यो नमः ।
ॐ सर्वपूज्येभ्यो नमः ।
ॐ गृहिभ्यो नमः । ५५।
ॐ सूत्रकृद्भ्योनमः ।
ॐ भाष्यकृद्भ्यो नमः ।
ॐ महिमसिद्धेभ्यो नमः ।
ॐ ज्ञानसिद्धेभ्यो नमः ।
ॐ निर्दुष्टेभ्यो नमः । ६०।
ॐ शमधनेभ्यो नमः ।
ॐ तपोधनेभ्यो नमः ।
ॐ शापशक्तेभ्यो नमः ।
ॐ मन्त्रमूर्तिभ्यो नमः ।
ॐ अष्टाङ्गयोगिभ्यो नमः । ६५।
ॐ अणिमादिसिद्धेभ्यो नमः ।
ॐ जीवन्मुक्तेभ्यो नमः ।
ॐ शिवपूजारतेभ्यो नमः ।
ॐ व्रतिभ्यो नमः ।
ॐ मुनिमुख्येभ्यो नमः । ७०।
ॐ जितेन्द्रियेभ्यो नमः ।
ॐ शान्तेभ्यो नमः ।
ॐ दान्तेभ्यो नमः ।
ॐ तितिक्षुभ्यो नमः ।
ॐ उपरतेभ्यो नमः । ७५।
ॐ श्रद्धाळुभ्यो नमः ।
ॐ विष्णुभक्तेभ्यो नमः ।
ॐ विवेकिभ्यो नमः ।
ॐ विज्ञेभ्यो नमः ।
ॐ ब्रह्मिष्ठेभ्यो नमः । ८०।
ॐ ब्रह्मनिष्ठेभ्यो नमः ।
ॐ भगवद्भ्यो नमः ।
ॐ भस्मधारिभ्यो नमः ।
ॐ रुद्राक्षधारिभ्यो नमः ।
ॐ स्नायिभ्यो नमः । ८५।
ॐ तीर्थेभ्यो नमः ।
ॐ शुद्धेभ्यो नमः ।
ॐ आस्तिकेभ्यो नमः ।
ॐ विप्रेभ्यो नमः ।
ॐ द्विजेभ्यो नमः । ९०।
ॐ ब्राह्मणेभ्यो नमः ।
ॐ उपवीतिभ्यो नमः ।
ॐ मेधाविभ्यो नमः ।
ॐ पवित्रपाणिभ्यो नमः ।
ॐ संस्कृतेभ्यो नमः । ९५।
ॐ सत्कृतेभ्यो नमः ।
ॐ सुकृतिभ्यो नमः ।
ॐ सुमुखेभ्यो नमः ।
ॐ वल्कलाजिनधारिभ्यो नमः ।
ॐ ब्रसीनिष्ठेभ्यो नमः । १००।
ॐ जटिलेभ्यो नमः ।
ॐ कमण्डलुधारिभ्यो नमः ।
ॐ सपत्नीकेभ्यो नमः ।
ॐ साङ्गेभ्यो नमः ।
ॐ वेदवेद्येभ्यो नमः । १०५।
ॐ स्मृतिकर्तृभ्यो नमः ।
ॐ मन्त्रकृद्भ्यो नमः ।
ॐ दीनबन्धुभ्यो नमः ।
ॐ श्रीकश्यपादि सर्व महर्षिभ्यो नमः ।
ॐ अरुन्धत्यादि सर्वर्षिपत्नीभ्यो नमः । ११०।
॥ इति ऋष्यष्टोत्तरशतनामानि ॥
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🌷🌷ऋषिस्तुतिः १ हिन्दी अर्थ सहित 🌷🌷

🍁
भृगुर्वशिष्ठः क्रतुरङ्गिराश्च मनुः पुलस्त्यः पुलहश्च गौतमः ।
रैभ्यो मरीचिश्च्यवनश्च दक्षः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ १॥
अर्थ –
हे प्रभु! भृगु, वशिष्ठ, क्रतु, अङ्गिरा, मनु, पुलस्त्य, पुलह और गौतम,
रैभ्य, मरीचि, एवं श्यवन तथा दक्ष सभी ऋषि मेरे लिए सुप्रभात का आशीर्वाद दें।
अर्थात् ये सभी ऋषि आज मेरे दिन की शुभ शुरुआत करें।

🍁
सनत्कुमारः सनकः सनन्दनः सनातनोऽप्यासुरि-पिङ्गलौ च ।
सप्त स्वराः सप्त रसातलानि कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ २॥
अर्थ –
सनत्कुमार, सनक, सनंदन, सनातन और अप्यासुरी-पिंगल,
सात स्वर और सात रसातल सभी मेरे लिए सुप्रभात का मंगल करें।
अर्थात्, संगीत और रसों की दिव्यता भी मेरे दिन में शुभता लाए।

🍁
सप्तार्णवाः सप्त कुलाचलाश्च सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त ।
भूरादि कृत्वा भुवनानि सप्त कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ ३॥
अर्थ –
सात समुद्र, सात कुलाचल, सात ऋषि और सात द्वीप तथा वन,
सातों लोकों को समृद्ध और शुभ बनाएँ।
अर्थात्, सम्पूर्ण भुवन और जीव-जगत मेरे दिन के लिए मंगलमय हों।

🍁
इत्थं प्रभाते परमं पवित्रं पठेद् स्मरेद् वा श‍ृणुयाच्च तद्वत् ।
दुःखप्रणाशस्त्विह सुप्रभाते भवेच्च नित्यं भगवत्प्रसादात् ॥ ४॥
अर्थ –
इस प्रकार प्रभातकाल में यह अत्यंत पवित्र स्तोत्र पढ़े, सुने या स्मरण करे।
हे भक्त! इससे सभी दुःख और संकट दूर होते हैं, और भगवती-भगवान की कृपा से दिन की शुरुआत मंगलमय होती है।
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-🌷🌷ऋषिस्तुतिः २ हिन्दी अर्थ सहित 🌷🌷🌷

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विश्वामित्र वसिष्ठ वत्स भरत व्यासङ्गिरो गौतमाः
माण्डव्यात्रि पुलस्त्य धौम्य पुलहाऽष्टावक्र गर्गादयः ।
मार्कण्डेय विभाण्डको शुक शतानन्दाश्वलोद्दालका
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ १॥
अर्थ –
विश्वामित्र, वशिष्ठ, वत्स, भरत, व्यास, अङ्गिरा, गौतम,
माण्डव्य, त्रि-पुलस्त्य, धौम्य, पुलह, अष्टावक्र, गर्ग और अन्य मार्कण्डेय, विभाण्डक, शुक, शतानंद आदि सभी वेदों और वैदिक धर्म के रक्षक ऋषि हैं।
वे हमेशा मेरे भले के लिए शुभकामनाएँ दें।

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यास्को गालव याज्ञवल्क्य जनको जाबाल्यगस्त्यादयो
भारद्वाज उतथ्य लोमशकृपाः सूतादयः शौनकः ।
दुर्वासा भृगु भार्गवौ च कुशिकः शाण्डिल्य गार्ग्यायणी
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ २॥
अर्थ –
यास्क, गालव, याज्ञवल्क्य, जनक, जाबाल्य, गस्त्य, भारद्वाज, उतथ्य, लोमश, कृप, सूत, शौनक,
दुर्वासा, भृगु, भार्गव, कुशिक, शाण्डिल्य, गार्ग्यायणी – ये सभी वैदिक धर्म के रक्षक ऋषि हैं।
वे सदा मेरे और सभी भक्तों के कल्याण की कामना करें।

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नन्दी नारद तुम्बुरुश्च कपिलो सौबाष्कलौ देवलः
सिद्धास्ते सनकादयोरहगणः कौडिन्य शिब्यादय ।
शृङ्गी गौतम शुष्य शृङ्ग मनवो मान्धात मेधा ध्रुवाः
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ ३॥
अर्थ –
नंदी, नारद, तुम्बुरु, कपिल, सौबाष्कल, देवल,
सनकादि रिहगण, कौडिन्य, शिब्यादि, शृङ्गी, गौतम, शुष्य, शृङ्ग, मनव, मान्धात, मेधा, ध्रुव आदि ऋषि सभी वेद और वैदिक धर्म के संरक्षक हैं।
वे सदा मेरे और सम्पूर्ण जगत के कल्याण की कामना करें।

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शको दीर्घतमा दधीचिरुपमन्यः पिप्पलादादयो
बार्हस्पत्य कणाद पाणिनि बृहस्पत्यासुरोन्द्रादयः ।
शङ्खः पञ्चशिखः पराशर वृषा मेधातिथिर्मुद्गलो
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ ४॥
अर्थ –
शको, दीर्घतमा, दधीचि, रुपमन्य, पिप्पलाद,
बार्हस्पत्य, कणाद, पाणिनि, बृहस्पति, असुरोन्द्र आदि सभी ऋषि
वैदिक धर्म के रक्षक हैं और वे हमेशा सम्पूर्ण जगत के कल्याण के लिए कामना करें।

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मौद्गल्योऽथ धनञ्जयो सित भरद्वाजा नलो धर्मराड्-
माण्डव्यासाङ्गिरसौ ययाति भरताः कण्वोऽथ हारीतकः ।
शक्तिः कश्यप काश्यपौच्यवनको वात्सायनश्च क्रतु
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ ५॥
अर्थ –
मौद्गल्य, धनञ्जय, सित, भरद्वाज, नल, धर्मराज,
माण्डव्य, आसङ्गिर, ययाति, भरत, कण्व, हारीतक, शक्ति, कश्यप, काश्यप,
च्यवनक, वात्सायन, क्रतु – ये सभी ऋषि वैदिक धर्म के रक्षक हैं।
वे सदा मेरे और जगत के कल्याण की कामना करें।

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वैशम्पायन पिप्पलायन बुधास्तौ जह्नु कात्यायनौ
गोरक्षो जमदग्नि जैमिनी शुनश्शेपाश्च सामश्रवाः ।
गार्यः शाकल शाकटायन शकाः शाकस्य कौत्सादयो
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ ६॥
अर्थ –
वैशम्पायन, पिप्पलायन, बुद्ध, जह्नु, कात्यायन, गोरक्ष, जमदग्नि, जैमिनी,
शुनश्शेप, सामश्रव, गार्य, शाकल, शाकटायन, शक, शाकस्य, कौत्स आदि ऋषि
वैदिक धर्म के संरक्षक हैं और सदा जगत कल्याण की कामना करते हैं।

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भीष्मो भागुरि पिङ्गलौ च सगरो द्रोणः सहस्रार्जुनो
बुद्धो वामन कासकृत्स्न शबराः पाण्ड्वम्बरीषादयः ।
आपस्तम्ब पतञ्जली पुरुरवाः पुष्य पृथुः पाण्डवाः
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ ७॥
अर्थ –
भीष्म, भागुरि, पिङ्गल, सगर, द्रोण, सहस्रार्जुन, बुद्ध, वामन, कासकृत्स्न, शबर, पाण्डव, अमरीष आदि ऋषि
वैदिक धर्म के रक्षक हैं।
वे सदा मेरे और सम्पूर्ण जगत के कल्याण की कामना करें।

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देवापिर्वरतन्तु शन्ततु गदा दाल्भ्योऽभिमन्युर्वसू
रैभ्यः सौभरि जैबली बलि मिथी बौद्धायनो नैमिषः ।
अश्वत्थाम विलेशयौ द्रुपदको नेमिः मृकन्डुर्यमो
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ ८॥
अर्थ –
देवापि, वरतन्तु, शान्ततु, गदा, दाल्भ्य, अभिमन्यु, वसू, रैभ्य, सौभरि, जैबली, बलि, मिथि, बौद्धायन, नैमिष, अश्वत्थाम, विलेशय, द्रुपद, नेमि, मृकन्दुर्य – ये सभी ऋषि और महापुरुष वैदिक धर्म के संरक्षक हैं।
वे सदा मेरे और संसार के कल्याण के लिए शुभकामनाएँ दें।

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आत्रेयो जनमेजय श्रवणकः स श्वेतकेतुर्लवः
काकुत्स्थश्च विकुक्षि सञ्जय महावीराः सुधन्वोदयः ।
श्वेताश्वो नचिकेत लक्ष्मण पुरु श्रीक्षेमधन्वादयो
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ ९॥
अर्थ –
आत्रेय, जनमेजय, श्रवणक, श्वेतकेतु, लव, काकुत्स्थ, विकुक्षि, संजय, महावीर, सुधन्वोदय, श्वेताश्व, नचिकेत, लक्ष्मण, पुरु, श्रीक्षेमधन्व आदि ऋषि
वैदिक धर्म के रक्षक हैं और सदा मेरे और जगत के कल्याण की कामना करें।

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लौकाक्षी च वसन्तनो दयनको स व्याघ्रपादो जयः
शाल्वः शूर कुशध्वजाऽज विदुरास्तेवासुदेवादयः ।
ऋक्सेना ऋतुपर्ण कर्णक दिवोदासैकलव्यादयो
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ १०॥
अर्थ –
लौकाक्षी, वसन्तन, दयनक, व्याघ्रपाद, जय, शाल्व, शूर, कुशध्वज, अज, विदुर, असेव, वासुदेव और अन्य ऋषि
वैदिक धर्म के संरक्षक हैं।
वे सदा मेरे और सम्पूर्ण जगत के कल्याण की कामना करें।

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प्रह्लादो डहरः सुभिक्ष ललितौ शुरः शिलादित्यको
बप्यो विक्रम भोज भतहरयस्ते गोपिचन्द्रादयः ।
मानांशूदय नाग नीप मलयाः पृथ्वी प्रतापौ शिवौ
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ ११॥
अर्थ –
प्रह्लाद, डहर, सुभिक्ष, ललित, शूर, शिलादित्य, बप्य, विक्रम, भोज, भतहरय, गोपिचन्द्र और अन्य महापुरुष
वैदिक धर्म के रक्षक हैं।
वे सदा मेरे और जगत के कल्याण की कामना करें।

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पैङ्गी भृङ्गि मरीचि कर्दममुखाः कल्माषपादो यदु-
र्दुष्यन्तः सुरथ समाधि नहुषौ हर्षः प्रियादिव्रतः ।
अन्ये चापि तुलाधर प्रभृतयो लर्कश्च पारस्करो
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ १२॥
अर्थ –
पैङ्गी, भृङ्गि, मरीचि, कर्दममुख, कल्माषपाद, यदुर्दुष्यन्त, सुरथ, समाधि, नहुष, हर्ष, प्रियादिव्रतः और अन्य ऋषि
वैदिक धर्म के रक्षक हैं।
वे सदा मेरे और सम्पूर्ण जगत के कल्याण की कामना करें।

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अग्नीध्रो हरिरग्निबाहु सवनौ नाभिर्वसुः केतुमान्
ज्योतिष्मान् द्युतिमानिलावृत हिरण्मद्रम्यकाहव्यकः ।
पत्रः किम्पुरुषः कृशाश्व, ऋषभौ भद्राश्व मुख्याखिला
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ १३॥
अर्थ –
अग्निध्र, हरिरग्निबाहु, सवन, नाभिर्वसुः, केतुमान, ज्योतिष्मान्, द्युतिमान, इलावृत, हिरण्मद्र, म्यकाहव्यक, पत्र, किम्पुरुष, कृशाश्व, ऋषभ, भद्राश्व और अन्य ऋषि
वैदिक धर्म के रक्षक हैं।
वे सदा मेरे और सम्पूर्ण जगत के कल्याण की कामना करें।

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पुण्यास्ते मनवश्चतुर्दश शुभास्ते वालखिल्यादय
इक्ष्वाकुः कुरु रन्तिदेव रघवो रामो दिलीपोंऽशुमान् ।
पाला पङ्किरथो भगीरथ कुसौ नागाश्च सेनादयो
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ १४॥
अर्थ –
मनु, चतुर्दश शुभ, वालखिल्य आदि, इक्ष्वाकु, कुरु, रन्तिदेव, रघु, राम, दिलीप, अशुमान,
पाला, पङ्किरथ, भगीरथ, कुस, नाग और सेनादि ऋषि
वैदिक धर्म के रक्षक हैं।
वे सदा मेरे और सम्पूर्ण जगत के कल्याण की कामना करें।

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सिंहालिच्छवि मल्लशाह सहिताश्चन्द्राश्च चोलादयो
गुप्तावर्धन वर्मदेव सहजाः शाक्या शका विक्रमाः ।
चाणक्यश्चरकश्च सुश्रुत भटौ नागो नृगो माधवो
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ १५॥
अर्थ –
सिंहालिच्छवि, मल्लशाह, सहिताश्चन्द्र, चोलादि, गुप्तावर्धन, वर्मदेव, सहज, शाक्या, शका, विक्रम,
चाणक्य, चरक, सुश्रुत, भटौ, नाग, नृगो, माधव – ये सभी ऋषि और महापुरुष
वैदिक धर्म के रक्षक हैं।
वे सदा मेरे और जगत के कल्याण की कामना करें।

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अन्ये स्व स्व कृतिप्रसिद्धयशसो ब्रह्मर्षि राजर्षयः
शत्रुघ्नो भरतोऽथ लक्ष्मणबली कृष्णोद्धवौ सात्यकी ।
प्रद्युम्नोऽप्यसमञ्जसो वृष हरिश्चन्द्रौ नरेन्द्रादयोः
विश्वे वैदिकधर्मरक्षक ऋषिव्राताः सदा पान्तुनः ॥ १६॥
अर्थ –
अन्ये अपने-अपने कर्म और प्रसिद्धि के अनुसार ब्रह्मर्षि, राजर्षि, शत्रुघ्न, भरत, लक्ष्मण, बलि, कृष्ण, उधव, सात्यकी, प्रद्युम्न, असमञ्जस, वृष, हरिश्चन्द्र और अन्य महार्षि
वैदिक धर्म के रक्षक हैं।
वे सदा मेरे और सम्पूर्ण जगत के कल्याण की कामना करें।
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🍁🍁🍁 सद्गुरु अष्टकम् 🍁🍁🍁

वन्देऽहं सच्चिदानन्दं भेदातीतं जगद्गुरुम् ।
नित्यं पूर्णं निराकारं निर्गुणं सर्वसंस्थितम् ॥ १॥

परात्परतरं ध्येयं नित्यमानन्द-कारणम् ।
हृदयाकाश-मध्यस्थं शुद्ध-स्फटिक-सन्निभम् ॥ २॥

अखण्ड-मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराऽचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ३॥

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ४॥

अज्ञान-तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन-शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ५॥

चैतन्यं शाश्वतं शान्तं व्योमातीतं निरञ्जनम् ।
विन्दु-नाद-कलातीतं तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ६॥

अनेक-जन्म -संप्राप्त -कर्मबन्ध -विदाहिने ।
आज्ञज्ञान-प्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ७॥

शिष्याणां मोक्षदानाय लीलया देहधारिणे ।
सदेहेऽपि विदेहाय तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ८॥

गुर्वष्टकमिदं स्तोत्रं सायं-प्रातस्तु यः पठेत् ।
स विमुक्तो भवेल्लोकात् सद्गुरो कृपया ध्रुवम् ॥ ९॥

इति गुर्वष्टकं सम्पूर्णम् ।

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