प्रत्येक व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है। वह अपनी इच्छा बुद्धि योग्यता और संस्कारों से प्रेरित होकर अपनी योजनाएं बनाता है, और उसके अनुसार क्रियाएं करता रहता है। फिर आगे जैसी जैसी परिस्थितियां सामने आती रहती हैं, उनके अनुसार वह तत्काल नए-नए निर्णय लेकर आगे कार्य करता रहता है।”
अब सारी परिस्थितियां किसी के अधिकार में होती नहीं। इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता, कि “कल क्या परिस्थिति होगी, और कौन व्यक्ति क्या कार्य करेगा? उसका भविष्य कैसा होगा?”
फिर भी सामान्य रूप से व्यक्ति अपनी योग्यता बुद्धि के अनुसार अपनी योजनाएं बनाता है और कार्य करता है। “तो जो भी उसका लक्ष्य निर्धारित होता है, वह उसकी वर्तमान बुद्धि संस्कार योग्यता रुचि आदि साधनों पर आधारित होता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार बुद्धि संस्कार योग्यता रुचि एवं देश के तथा ईश्वर के संविधान को ध्यान में रखते हुए अपनी योजनाएं बनानी चाहिएं। तभी वह अपने जीवन में आगे उन्नति कर सकता है, और सफल हो सकता है।”
इसके लिए उसको देश के तथा ईश्वर के संविधान के अनुसार उत्तम निर्णय लेना चाहिए, और वैसा ही पुरुषार्थ करना चाहिए। “न कि संविधान के विरुद्ध अपनी मनमानी इच्छाएं पूरी करने की वह योजनाएं बनाए और उल्टे सीधे काम करे। इससे तो उसका जीवन दुखमय एवं निष्फल हो जाएगा।”
अतः अपने भविष्य को उत्तम, तथा अपने जीवन को सफल बनाने के लिए, संविधान के अनुकूल उत्तम निर्णय लेवें, और उसके अनुसार पूर्ण पुरुषार्थ करें।
हमारी समस्या का समाधान तो हमारे पास ही है दूसरों के पास तो केवल सुझाव होते हैं।
इंसान भी शेयर बाजार जैसा हो गया है कब कौन कितना गिर जाय अंदाजा लगाना मुश्किल है।
आजकल पैसा रिश्तेदारी का लाइसेंस बन चुका है, जिसके पास नहीं है वह रिश्तेदारी के काबिल नहीं है।
गुस्सा अकेला आता है मगर हमसे सारी अच्छाई ले जाता है।सब्र भी अकेला आता है मगर हमें सारी अच्छाई दे जाता है। परिस्थितियां जब विपरीत होती हैं तब व्यक्ति का “प्रभाव और पैसा” नहीं “स्वभाव और सम्बन्ध” काम आते हैं।जो ईश्वर के सामने झुकता है उसे ईश्वर किसी के सामने झुकने नहीं देते।
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