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हम सब जानते हैं कि इस जीवन को आखिर एक दिन खत्म हो जाना है फिर हम क्यों इन झूठे रंग तमाशों में झूठ की शानौ शौकत में अपना कीमती समय बरबाद करते हैं? सन्तो ने हमारे एक स्वांस का मोल तीन लोक का मोल से भी ऊपर लगाया है लेकिन हमें अपने इन स्वांसो की कीमत का अन्दाजा तक नहीं। जिस दिन हमारा आखरी समय आता है तब हमे इसकी कीमत का अन्दाजा होता है लेकिन तब तक सब खत्म हो चुका होता है हम इस मानुष जन्म की जीती बाजी भी हार चुके होते हैं। यह मानुष चोला हमें परमात्मा से मिलाप करने के लिए मिला था आवागमन से मुक्त होने के लिए मिला था लेकिन अफसोस हमने इसे दुनिया की शानौ शौकत झूठे रंग तमाशों व और ऐशो इशरत मे गवां दिया। खुशनसीब हैं वे लोग जो जीते-जी इस सच्चाई को जान गये हैं और ‘पूर्ण गुरू’ की शरण मे पुहँचकर ‘नाम’ की कमाई मे लग गये वे आज नहीं तो कल इस भवसागर से पार हो ही जायेंगे।
सोचने की बात यह है कि जो भोजन खा पीकर हम संतुष्ट और प्रसन्न होते हैं स्वस्थ रहते हैं जो वस्त्र हमारे शरीर की शोभा बनते हैं मौसम के प्रहार से हमारी रक्षा करते हैं और अन्य सुख सुविधाएं जो हम दिनरात भोगते हैं वह सब कुछ परमेश्वर का ही दिया हुआ है यह जानते हुए भी उस परमात्मा को भुलाए रखना कहां तक उचित है? अगर हमारी दृष्टि में ये नश्वर चीजें बटोरना ही सबसे बड़ी प्राप्ति है तो यह हमारी नादानी है ये नश्वर चीजें बटोरना तो अमूल्य मनुष्य-जन्म को बर्बाद कर लेना है। ‘प्रभु’ से सांसारिक पदार्थ मांगना नासमझी है क्योंकि हमारे हित के लिए हमारी जरूरतें उसे पहले ही मालूम होती हैं और वह उन्हें अपने-आप जन्म के समय हमारे प्रारब्ध में लिखकर पूरी कर देता है।
।। जय सियाराम जी।।
।। ॐ नमः शिवाय।।

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