संयम में जीना सीखो
संयम मानवीय गुणों में एक प्रधान गुण है। पशुओं में इन्द्रिय निग्रह देखने को नहीं मिलता अर्थात् पशुओं के जीवन में संयम नहीं होता है। स्वयं के द्वारा स्वयं के विरुद्ध लड़ा जाने वाला संग्राम ही संयम कहलाता है। संयम अर्थात एक युद्ध स्वयं के विरुद्ध।
जिस जीवन में संयम नहीं वह जीवन पशु भले न हो पर पशुवत अवश्य हो जाता है। असंयमितता जीवन को पतन की ओर ले जाती है।
व्यक्ति केवल पैरों से ही नहीं फिसलता है अपितु आँखों से, कानों से जिह्वा से और मन से भी फिसल जाता है।
स्वयं के पैरों को गलत दिशा में जाने से रोकना, स्वयं के कानों को गलत श्रवण से रोकना, स्वयं की आँखों को कुदृश्य देखने से रोकना और स्वयं के मन को दुर्भावनाओं से बचाना, यह स्वयं के द्वारा स्वयं के विरुद्ध लड़ा जाने वाला संयम रुपी युद्ध ही तो है।
जीवन में संयमी और शुभ कार्यों में अग्रणी, यही तो महापुरुषों के लक्षण हैं।
🙏जय श्री राधे कृष्ण