आज का भगवद् चिन्तन
🪷🪷 समाज में हमारी भूमिका🪷🪷
धूप से मुरझाये पौधे के लिए थोड़ा सा जल जीवनदायी बन जाता है एवं नैराश्य की आँच से संतप्त व्यक्ति के लिए थोड़ा सा सहारा प्राणदायी बन जाता है। मनुष्य को उस ईश्वर ने एक सामाजिक प्राणी बनाया है।
समाज में घट रही प्रत्येक अच्छी-बुरी घटना के प्रति संवेदनशील रहना ही हमें और अधिक सामाजिक बनाता है। अपने साथ-साथ समाज में रह रहे अन्य लोगों की वेदनाओं की चुभन हमारे हृदय में भी होनी ही चाहिए।
सामाजिक प्राणी होने का अर्थ केवल इतना नहीं कि मनुष्य समाज के बीच में रहता है अपितु यह है कि समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी भी हमारी होनी चाहिए।
जो लोग निराशा में, विषाद में अथवा तो अभाव में अपना जीवन जी रहे हैं अपनी सामर्थ्यानुसार उनसे जुड़े रहना ही हमें और अधिक मानवीय बनाकर एक स्वस्थ समाज के नवनिर्माण में अपना योगदान देता है।
जय श्री राधे कृष्ण 🪷