।।श्री गुरवे नमः।।
वन्दे महेश्वरं शांतं सानन्दं सुन्दरं शिवम्। श्रीशं गणेशं गिरिजां तपनं पितरौ तथा।। देवताभ्यःपितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमःस्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।
प्रत्येक मास की अमावस्या को पीपल के वृक्ष में, जल+पंचामृत+तिल,ताँबे के पात्र में भरकर डालें।दीपऔर धूप करें। पीपल की प्रदक्षिणा करें।और पीपल के सामने बैठकर पितृसुक्त का पाठ करें।पितृ की अपार प्रसन्नता प्राप्त होगी। 🫴देखना नम हों न,घर के बड़ों की आँखें। उनका प्रसन्न रहना साक्षात श्राद्ध है।।
यस्ते ददाति रवमस्य वरं ददासियो वा मदं वहति तस्य दमं विधत्से।
इत्यक्षरद्वयविपर्ययकेलिशील किं नाम कुर्वति नमो न मनः करोषि।।
हे शंकर!जो तुम्हें रव देता(स्तुति करता)है,उसे तुम(रव का उलटा)वर देते हो;जो(मूर्ख आपके सम्मुख)मद प्रकट करता है,उसेआप दम (दण्ड, मदका उलटा दम)देते हैं;इस प्रकार अक्षरद्वय को उलट-फेर करने का खेल आपको बहुत ही पसंद है!तो फिर मेरे नमःकहनेपर(मेरी ओर नमःका उलटा) अपना मन क्यों नहीं फेरते!(श्री जगद्धर भट्ट की स्तुति कुसुमांजलि से)
।।श्री हरिहराय नमस्तुभ्यं।।
अम्बरीष चन्द्र मिश्र..
श्री अयोध्या धाम..