Spread the love

आज का श्रीमद् भागवत भाव
—————————- ( 4 – 4 – 25 )
★ भागवत कहती है , कि आप नहीं चाहेंगे , तब भी आपको सब कुछ यहीं छोडकर जाना पडेगा । और अब भी आप सबको यहीं छोड – छोडकर जाते हुए देख भी रहे हैं , फिर भी संसारी लोग न तो पाप करने से डरते हैं , और न अपनों से ही दुश्मनी करने से । उनके दिन भर के सारे कर्म अपने शरीर और शरीर से सम्बन्धित लोगों को सुखी रखने के लिए होते हैं । सुख भी ऐसा , जो सदा सर्वदा अटल रहे , किंतु विडम्बना यह है , कि उनके कर्म अटलसुख वाले नहीं होते , बल्कि क्षणिक सुखों वाले होते हैं । अटलसुख तो अन्दर की चीज है , यानि अटल सुख ईश्वरीय आनंद को कहते हैं , सुख – सुविधाओं को नहीं ।

★ हर संसारी मनुष्य को यह मनुष्य शरीर ‌‌ ईश्वर प्रदत्त एक उत्कृष्ट निधि है । यह निधि उसे परमात्म प्राप्ति को मिली है । इसे पच्चीस – पचास साला दुख मिश्रित क्षणिक सुखों में खपा देना जीव की अक्लमंदी नहीं , बल्कि घोर अज्ञानता है । यदि सत्संग चर्चाओं से सीख लेकर जीव इस निधि का विवेकपूर्वक उपयोग करले , तो यही निधि उसे इसी जन्म में जीवनमुक्त करने की सामर्थ्य रखती है । यह कल्पतरु है , यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है । काश ! समय रहते जीव इसकी कीमत समझ पाता । ताज्जुब है , ‌‌कि
*वह जिस डाल पर बैठा है,उसे ही काट रहा है।
फिर बताइये,वह सोया हुआ है,या जगा हुआ।।

★ सारी सृष्टि में निरंतर सच्चिदानन्द प्रभु का ही सच्चिदानन्दमयी लीला – विलास चल रहा है , उनकी सच्चिन्मयी लीला के अतिरिक्त यहां कुछ भी नहीं है । इसलिये जीव को प्रतिकूलता की स्थिति में दुख की अनुभूति होने के बजाय अपने अनैतिक कर्मों का स्मरण होना चाहिये । क्योंकि वे भगवान तो सकल सृष्टि के परमपिता हैं । वे भला बिना किसी कारण के अपनी संतान के लिये ऐसी कोई स्थिति क्यों उत्पन्न करेंगे , जो कि परिणाम में उसके लिए सुखद न हो ? प्रतिकूल लगने वाली परिस्थिति तो जीव की अपनी तरफ से उत्पन्न की हुई होती हैं । जीव यदि इसे स्वीकार कर ले , तो उसे न तो अधिक दुख होगा , और न ईश्वर से शिकायत रहेगी ।

( भाई रामगोपालानन्द गोयल ” रोटीराम ” )
ऋषिकेश 91,1832 ,1832 ,9412588877
Mail – ramgopalgoyal11@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *