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प्राणिमात्र के हित में प्रीति
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“यह कौन है?”
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“महाराज !! यह दूध बेचने वाली है। इसने पानी मिलाकर दूध बेचा, जिससे बच्चों के पेट बढ़ गये, वह बीमार हो गये। इसका क्या करें?”
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“इसको भी वैकुण्ठ में भेजो। यह कौन है?”
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इसने झूठी गवाही देकर बेचारे लोगों को फँसा दिया। इसका क्या किया जाये?”
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“अरे !! पूछते क्या हो? वैकुण्ठ में भेजो।”
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अब व्यभिचारी आये, पापी आये, हिंसा करने वाला आये, कोई भी आये, उसके लिए एक ही आज्ञा कि “वैकुण्ठ में भेजो।”
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अब धर्मराज क्या करें? गद्दी पर बैठा मालिक जो कह रहा है, वही ठीक !! वहाँ वैकुण्ठ में जाने वालों की कतार लग गयी।
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भगवान ने देखा कि अरे !! इतने लोग यहाँ कैसे आ रहे हैं? कहीं मृत्युलोक में कोई महात्मा प्रकट हो गये? बात क्या है, जो सभी को बैकुण्ठ में भेज रहे हैं? कहाँ से आ रहे हैं? देखा कि यह तो धर्मराज के यहाँ से आ रहे हैं।
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भगवान धर्मराज के यहाँ पहुँचे। भगवान को देखकर सब खड़े हो गये। धर्मराज भी खड़े हो गये। वह कायस्थ भी खड़ा हो गया। भगवान् ने पूछा, “धर्मराज !! आपने सबको वैकुण्ठ भेज दिया, बात क्या है? क्या इतने लोग भक्त हो गये?”
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धर्मराज ने कहा, “प्रभो !! मेरा काम नहीं है। आपने जो मुनीम भेजा है, उसका काम है।”
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भगवान ने कायस्थ से पूछा, “तुम्हें किसने भेजा?”
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कायस्थ, “आपने महाराज !!”
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भगवान ने कहा, “हमने कैसे भेजा?”
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“क्या ये मेरे हाथ की बात है, जो यहाँ आता? आपने ही तो भेजा है। आपकी मर्जी के बिना कोई काम होता है क्या? क्या यह मेरे बल से हुआ है?
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“ठीक है !! तूने यह क्या किया?”
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“मैंने क्या किया महाराज?”
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“तूने सबको वैकुण्ठ में भेज दिया।”
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“यदि वैकुण्ठ में भेजना खराब काम है तो जितने संत-महात्मा हैं, उनको दण्ड दिया जाये। यदि यह खराब काम नहीं है तो उलाहना किस बात की? इस पर भी आपको यह पसंद नहीं हो तो सब को वापस भेज दो। परन्तु भगवद्गीता में लिखा यह श्लोक आपको निकालना पड़ेगा — यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परम मम। अर्थात मेरे धाम में जाकर पीछे लौटकर कोई नहीं आता।
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“बात तो ठीक है, कितना ही बड़ा पापी हो, यदि वह वैकुण्ठ में चला जाय तो पीछे लौटकर थोड़े ही आयेगा। उसके पाप तो सब नष्ट हो गये। पर यह काम तूने क्यों किया?”
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“मैंने क्या किया महाराज? मेरे हाथ में जब बात आयेगी तो मैं यही करूँगा, सबको वैकुण्ठ भेजूँगा। मैं किसी को दण्ड क्यों दूँ? मै जानता हूँ कि थोड़ी देर देने के लिए गद्दी मिली है, तो फिर अच्छा काम क्यों ना करूँ? लोगों का उद्धार करना खराब काम है क्या?
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भगवान् ने धर्मराज से पूछा, “धर्मराज! तुमने इसको गद्दी कैसे दे दी?”
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धर्मराज बोले, “महाराज !! देखिये, आपका कागज आया है। नीचे साफ-साफ आपके दस्तखत हैं।”
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भगवान ने कायस्थ से पूछा, “क्यों रे !! यह कागज मैंने कब दिया तेरे को?”
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कायस्थ बोला, “आपने गीता में कहा है — सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्ट:। अर्थात मै सबके हृदय में रहता हूँ, अतः हृदय से आज्ञा आयी कि कागज लिख दे तो मैंने लिख दिया। हुक्म तो आपका ही हुआ। यदि आप इसको मेरा मानते हैं तो गीता में से उपर्युक्त बात निकाल दीजिये।”
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भगवान् ने कहा, “ठीक।”
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धर्मराज से पूछा, “अरे धर्मराज !! बात क्या है? यह कैसे आया?”
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धर्मराज बोले, “महाराज !! कैसे क्या आया, आपका पुत्र ले आया।”
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दूतों से पूछा, “यह बात कैसे हुई?
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दूत बोले, “महाराज !! आपने ही तो एक दिन कहा था कि एक जीवित आदमी लाना।
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धर्मराज, “तो वह यही है क्या? अरे !! परिचय तो कराते।”
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दूत बोले, “हम क्या परिचय कराते महाराज !! आपने तो कागज लिया और इसको गद्दी पर बैठा दिया। हमने सोचा कि परिचय होगा, फिर हमारी हिम्मत कैसे होती बोलने की?
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हाथी वहाँ खड़ा सब देख रहा था, बोला, “जै रामजी की !! आपने कहा था कि तू कैसे आदमी के वश में हो गया? मैं क्या वश में हो गया, वश में तो धर्मराज हो गये और भगवान् हो गये। यह काले माथे वाला आदमी बड़ा विचित्र है महाराज !! यह चाहे तो बड़ी उथल-पुथल कर दे। यह तो खुद ही संसार में फँस गया।
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भगवान् ने कहा, “अच्छा !! जो हुआ सो हुआ, अब तो नीचे चला जा।”
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कायस्थ बोला, “गीता में आपने कहा है —मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते। अर्थात मेरे को प्राप्त होकर पुनः जन्म नहीं लेता। तो बतायें, मैं आपको प्राप्त हुआ कि नहीं?”
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भगवान, ने कहा, “भाई !! तू चल मेरे साथ।
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कायस्थ बोला, “महाराज !! केवल मैं ही चलूँ? हाथी पीछे रहेगा बेचारा? इसकी कृपा से ही तो मैं यहाँ आया। इसको भी तो लो साथ में।”
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हाथी बोला, “मेरे बहुत से भाई यहीं नरकों में बैठे हैं, सबको साथ ले लो।
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भगवान् बोले, “चलो भाई !! सबको ले लो।”
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भगवान के आने से हाथी का भी कल्याण हो गया, कायस्थ का भी कल्याण हो गया और अन्य जीवों का भी कल्याण हो गया।
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🌷यह कहानी तो कल्पित है, पर इसका सिद्धांत पक्का है कि अपने हाथ में कोई अधिकार आये तो सबका भला करो। जितना कर सको, उतना भला करो। अपनी तरफ से किसी का बुरा मत करो, किसी को दुःख मत दो। गीता का सिद्धांत है — सर्वभूतहिते रताः। अर्थात प्राणिमात्र के हित में प्रीति हो। अधिकार हो, पद हों, थोड़े ही दिन रहने वाला है। सदा रहने वाला नहीं है। इसलिये सबके साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करो।🌷
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🙏🙏 जय श्री राधेश्याम जी 🙏🙏

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