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महाकुंभ: सनातन का महासागर, आत्मा का जागरण!

कुंभ कोई मेला नहीं, यह युगों-युगों से चलता आ रहा वह दिव्य संगम है जहाँ न केवल शरीर जल में डुबकी लगाता है, बल्कि आत्मा अमृत में स्नान करती है। यह पर्व केवल स्नान का नहीं, यह सनातन की आत्मा का जागरण है, धर्म की गूंज है, देवताओं की सभा है और ऋषियों की वाणी है।

यहाँ जाति नहीं, केवल भक्ति है।
यहाँ छुआछूत नहीं, केवल सनातन की समरसता है।
यहाँ वैमनस्य नहीं, केवल प्रेम और शिवत्व की अनुभूति है।

संगम के पवित्र जल में जब कोई सनातनी उतरता है, तो वह केवल जल में प्रवेश नहीं करता, वह अपने पूर्वजों के संकल्पों को धारण करता है। वह डुबकी लगाकर केवल अपने पापों का नाश नहीं करता, वह अपनी आत्मा को ऋषियों की परंपरा से जोड़ता है।

किन्तु! इस बार कुछ ऐसा हुआ जो समस्त सनातन प्रेमियों को एक नई ऊर्जा देने वाला है!

जहाँ बार-बार सनातन को जातिवाद का जहर फैलाने वाला कहा जाता था, वहाँ इस महाकुंभ ने सिद्ध कर दिया कि सनातन केवल एक धर्म नहीं, यह अखंड प्रेम और विश्वबंधुत्व की चेतना है।

ब्राह्मण-शूद्र का भेद? नहीं!

ऊँच-नीच का प्रश्न? नहीं!

भेदभाव और संकीर्ण मानसिकता? नहीं!

तो फिर क्या था?

था तो केवल एक मंत्र—’हर हर महादेव!’
था तो केवल एक नारा—’सनातन अमर रहे!’
था तो केवल एक उद्देश्य—’शिव की राह पर समस्त विश्व को चलाना!’

लेकिन देखो!
जहाँ यह दिव्यता चमक रही है, वहाँ कुछ सफेद काले काग हंस का रूप धरकर आए हैं!
वे वही हैं जो हर बार कुंभ में विष घोलने आते हैं। वे वही हैं जो सनातन को तोड़ने की असफल कोशिश करते हैं।
लेकिन इस बार सनातन के जागे हुए महायोगियों, संतों, सन्यासियों और भक्तों ने उनके हर प्रयास को ध्वस्त कर दिया!

अब यह हर सनातनी का कर्तव्य है कि इस सत्य को हर मंच पर, हर हृदय में, हर विचार में स्थापित करे!
यह समय है केवल गर्व करने का नहीं, इसे पूरी दुनिया को दिखाने का कि सनातन अमर था, है और रहेगा!

जो सो रहे हैं, उन्हें जगाओ! जो भ्रम में हैं, उन्हें सत्य दिखाओ! यह समय है गर्व से जयघोष करने का—

हर हर महादेव
भारत माता की जय!

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