रावण की लंका जली यूद्ध शरू रावण जंगल सफारी आमोद प्रमोद मे लगा रहा, बाद मे उनके घर से विभीषण बाहर, रावण का अंत?
: भोलेनाथ ने मां पार्वती के लिए बनवाई थी सोने की लंका, फिर कुबेर के कैसे लग गई हाथ? बाद में रावण का हुआ कब्जा
: ये कहानी तो सबको पता है, कि रावण ने अपने भाई कुबेर को हराकर उनसे सोने की लंका छीनी थी. लेकिन कुबेर को वो सोने की लंका कैसे मिली थी? अगर मिली भी, तो वो रावण तक कैसे पहुंच गई या फिर इसके पीछे है कोई रहस्यमयी वरदान, जिसे रावण ने भगवान शिव की अखंड तपस्या के जरिए हासिल कर ली थी…?
आज की स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए, रावण को सोने की लंका मिलने के पीछे ऐसे सबूत, जो आपने पहले कभी नहीं देखा-सुना होगा.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जिस स्वर्ण नगरी में रावण का अहंकार उसके आखिरी सांस तक अट्टाहासों में गूंजता रहा, वो सोने की लंका दरअसल भगवान शिव और पार्वती के लिए बसाई गई थी. ये इच्छा देवी पार्वती की थी कि बाकी देवताओं की तरह उनके पति शिव भी महलों में रहे. हालांकि शिव जी ने ये कहते हुए इंकार किया कि वो तो ठहरे योगी, वो कहां महलों में रह पाएंगे. लेकिन पार्वती नहीं मानीं. उन्होंने विश्वकर्मा जी से अपनी इच्छा बताई.
रावण के पिता ने शिव से दक्षिणा में मांग ली सोने की लंका
मां पार्वती की इच्छा पूरी करने के लिए ही विश्वकर्मा ने सोने की ऐसी नगरी बसाई कि इसे देखकर तीनो लोक के वासी मोहित हो गए. इन्हीं में से एक थे, ऋषि विश्रवा, जो रावण और कुबेर के पिता थे. दरअसल रावण के पिता ऋषि विश्रवा लंका में महादेव और पार्वती के गृह प्रवेश यज्ञ में मुख्य आचार्य थे. यज्ञ पूरा होने के बाद जब महादेव ने दक्षिणा मांगन को कहा, तो रावण के पिता ने पूरी लंका ही मांग ली. तब देवी पार्वती विश्रवा का लोभ देख क्रोधित हुईं, लेकिन महादेव ने मुस्कुराते हुए विश्रवा की मांग मान ली.
गाजियाबाद के दूधेश्वर मंदिर में रावण परिवार में कुलदेवता की तरह पूजे जाते थे. पौराणिक गाथाओं के मुताबिक रावण का परिवार बगल के बिसरख गांव से था, लेकिन वहां से 10 किलोमीटर दूर इस शिवलिंग की पूजा करने हर रोज आता था. मंदिर के पुजारी के अनुसार, ये स्वयंभू यानी अपने आप प्रकट हुए शिवलिंग है. इस शिवलिंग में रावण परिवार की आस्था इतनी थी कि रावण ने अपना सिर काट कर इस शिवलिंग पर चढ़ा दिया था.
रावण ने कैलाश धाम की तरह बसा दिया था नगर
आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे, कि रावण के परिवार ने इस पूरे इलाके को भगवान शिव के कैलाश धाम की तरह बसाया था. आज भी गाजियाबाद में कैल नाम का एक गांव है, जो रावण कुल के राज्य का हिस्सा माना जाता है. वैसे तो रावण के पिता विश्रवा ने अपने गांव विसरख में भी स्वयंभू शिवलिंग को स्थापित किया था. लेकिन कैल गांव के दूधेश्वर शिवलिंग में पूरे परिवार की आस्था इतनी गहरी थी, कि इसकी पूजा करने पूरा रावण कुल गुप्त तरीके से आता था. इसके लिए रावण के पिता ने ऐसी सुरंग बनवाई थी, जिसका पता किसी और को नहीं था.
गौतमबुद्ध नगर जिले के बिसरख गांव में जिस शिवलिंग को रावण कुल का स्थापित बताया जाता है, वहां पूरे देश और दुनिया के कई देशों से लोग दर्शन के लिए आते हैं. इस मंदिर में भी स्वयंभू शिवलिंग है, जिसे लाखों साल पुराना बताता जाता है, इसके अलावा बड़ा रहस्य है मंदिर से जाने वाली एक सुरंग का. कहते हैं, इसी सुरंग से रावण और उसका परिवार एक दूसरे शिवलिंग की गुप्त अराधना के लिए जाया करता था.
मंदिर जाने के लिए बनाई 10 किमी लंबी सुरंग
रावण के इस शिवमंदिर में जो भी आता है, वो ये सुरंग जरूर देखता है और ये जानना चाहता है, क्या ये सुरंग कब की है, क्या ये अब भी खुली है…? इस गुप्त सुरंग का यही रहस्य हमारे संवाददाता ने भी समझने की कोशिश की. रावण जिस दूधेश्वर मंदिर जाने के लिए इस सुरंग का इस्तेमाल किया करता था, वो यहां से करीब 10 किलोमीटर दूर है.
लेकिन सवाल ये है कि रावण दूधेश्वरनाथ मंदिर में जाने के लिए इस सुरंग का इस्तेमाल क्यों करता था…? इसकी वजह बताते हुए पंडित रामदास कहते हैं कि दूधेश्वर मंदिर के रास्ते में खूंखार भयंकर जंगल था. जिसमें तमाम तरह के खतरनाक जंगली जानवर रहा करते थे. इसलिए अपनी सुरक्षा को देखते हुए रावण परिवार इसलिए सुरंग के रास्ते दूधेश्वरनाथ मंदिर में जाता था.
एक गलती ने सब कर दिया खत्म
शिवपूजा के लिए पिता और दादा के बाद रावण के साथ पत्नी मंदोदरी भी इसी सुरंग के जरिए जाया करती थी. इस सुरंग का एक रास्ता मंदोदरी के गांव मंडेरगढ़ को भी जाता था. पुजारी रामदास बताते हैं, कि मंदोदरी बगल के राज्य मंडेरगढ़ की राजकुमारी थी, जिसे आज मेरठ के नाम से जाना जाता है. रावण ने शिवभक्ति के बावजूद गलतियां तो तमाम की, लेकिन पत्नी मंदोदरी ने भगवान शिव के चरित्र का हवाला देते हुए परस्त्री हरण और अंहकार से पीछे हटने की जो सलाह दी, उसे रावण ने नहीं माना. इसलिए भगवान शिव से अजर अमर होने का वरदान पाकर भी वो श्रीराम के हाथों मारा गया.
source :zee news Digital Network