भगवद्गीता मानव संसार के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं ?
गीता मनुष्यता को विक्षिप्ति, पागलपन, और आने वाले समय में आत्महत्या की बढ़ती हुयी महामारी से बचाने के लिए क्यों आवश्यक है?
WHO जैसी संस्थाएं घोसित कर चुकी हैं कि आने वाले दशकों में विक्षिप्तता और किशोर वय के लोगों में आत्महत्या की संख्या में बहुत वृद्धि होगी, विशेष करके समृद्ध समाज और देशों में।
आखिर आने वाली विभीषिका का निदान और उपचार क्या है?
आपको यदि याद होगा कि जब आपने अपना पहला कंप्यूटर खरीदा था तो इसके बारे में आपको बताया गया था कि इसके संघटकों के दो हिस्से होते हैं। एक हार्डवेयर, एक सॉफ्टवेयर। हार्डवेयर कैसे चलता है ? सॉफ्टवेयर के द्वारा। और सॉफ्टवेयर को कैसे समझें, इसके लिए आपको एक मन्नुअल दी जाती थी। जिसको पढ़कर आपने शनैः शनैः इसको चलाना सीखा था।
सॉफ्टवेयर का मैन्युअल बहुत सहायता करता है कंप्यूटर को ऑपरेट करने में। आज सॉफ्टवेयर का ही कमाल है कि हम सोशल मीडिया पर यह लेख लिख रहे हैं। विश्व ने बहुत उन्नत सॉफ्टवेयर विकसित कर लिया है। लेकिन आज भी कोई नया एप्प चलाना सीखना हो तो मन्नुअल की सहायता लेना ही पड़ता है।
उसी तरह मनुष्य के यंत्रों को दो भागों में बांटा जा सकता है। शरीर और माइंड। शरीर है हार्डवेयर। और माइंड है सॉफ्टवेयर। यह सभी जीवों के पास है। सारे जीव इनका उपयोग जीवन जीने में करते हैं। जो जीव और मनुष्य शरीर के स्तर पर जीवन जीते हैं वे न विक्षिप्ति होते हैं और न ही आत्महत्या करते हैं।
लेकिन मनुष्य का सॉफ्टवेयर बहुत उन्नत और जटिल है। जो लोग रोजी रोटी की आवश्यकता से बाहर आ चुके हैं, वे अंततः इस सॉफ्टवेयर के चक्कर में फंस ही जाते हैं। क्यों?
क्योंकि हमें पता नहीं है कि यह उन्नत यंत्र काम कैसे करता है? और समस्या यह है कि चाहे इस यंत्र के बारे में जानो और चाहे न जानो, जीवन जीने के लिए इसका उपयोग करना ही पड़ेगा। इसका उपयोग किये बिना जीवन जीना सम्भव नहीं होगा।
मेडिकल साइंस ह्यूमन सॉफ्टवेयर अर्थात माइंड से बिल्कुल अनभिज्ञ है। क्योंकि उसका सारा जोर आज तक ब्रेन के बारे में जानने का रहा है। और उसको भी उसने इतना जटिल बना दिया है कि उसके एक्सपर्ट भी उसे खंडों खंडों में जानते हैं। इसीलिए इसके इतने अलग अलग एक्सपर्ट हैं – न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, न्यूरो साइकोलोजिस्ट, साइकोलोजिस्ट, immuno न्यूरोलॉजिस्ट आदि आदि।
लेकिन ब्रेन तो माइंड और शरीर के बीच बना हुआ एक electrico – केमिकल सर्किट मात्र है। इस सर्किट को जानकर क्या माइंड के बारे में जाना जा सकता है?
दूसरी बात यदि हम माइंड नामक सॉफ्टवेयर के बारे में जाने बिना उसको ऑपरेट करेंगे, तो जो भी अच्छा या बुरा इस जीवन में होगा, वह एक संयोग मात्र होगा। एक एक्सीडेंट जैसा होगा। क्या संयोगवश इतने उन्नत सॉफ्टवेयर को चलाना उचित है? यदि हम इसको एक्सीडेंटल मेथड से चलाएंगे तो जीवन एक्सीडेंट और संयोगों का योग मात्र होगा। तो हमारे पास विक्षिप्त होने, और आत्महत्या करने के सिवा विकल्प क्या होगा?
यहीं पर भगवद्गीता जैसे ग्रंथों का महत्व उभरकर आता है। क्योंकि यदि इसे धार्मिक ग्रंथ मानो, तो धर्म का मर्म और मूल इसी में छिपा है। और यदि आप अपने आपको धार्मिक कहने में लज्जा का अनुभव करते हैं तो आपके लिए यह आपके सॉफ्टवेयर अर्थात माइंड का मैन्युअल है। कैसे हमारा माइंड या अंतःकरण ऑपरेट करता है उसी बात को विस्तृत तरीके से भगवद्गीता हमें समझाती है। यह बात अवश्य है कि इसकी भाषा एक cryptic है अर्थात गूढ़ भाषा है। इसको किसी मास्टर से समझना पड़ेगा। जो इस भाषा को समझता ही नहीं, बल्कि अपने सॉफ्टवेयर का मास्टर होता है उसे आजकल मिस्टिक कहते हैं।
पहले तो माइंड के मैन्युअल को समझना होगा, फिर उसका अनुभव करने का अभ्यास करना होगा। यही बताती है भगवद्गीता।
अर्जुन कहता है कि उसका मन उसके नियंत्रण में नहीं है, बलवती है, जहां चाहता है वहीं उसे घसीट ले जाता है। उस पर नियंत्रण करना वायु को मुट्ठी में पकड़ने जैसा है।
चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।
( गीता – 6.34 )
अर्थात् क्योंकि हे कृष्ण ! यह मन चंचल और प्रमथन स्वभाव का तथा बलवान् और दृढ़ है; उसका निग्रह करना मैं वायु के समान अति दुष्कर मानता हूँ ।।
कृष्ण कहते हैं – निश्चय ही तुमसे असहमत नहीं हुवा जा सकता। इसका उपाय है – अभ्यास और वैराग्य।
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।
( गीता – 6.35 )
गीता का अर्थ है – माइंड का वह मैन्युअल जो गेय है, जिसे गाया गया था, गाया जा सकता है।