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भगवत्-प्राप्ति — समर्पण की पूर्णता है, एक अनुभूति है, जो हरिःकृपा से हमारे जीवन में समर्पण की पूर्णता के बाद स्वतः घटित होती है। भगवान के महासागर में मैं जल की एक बूंद की तरह तैर रहा हूँ। इस जल की एक बूंद और महासागर की पृथकता के बोध की समाप्ती ही भगवत्-प्राप्ति है।
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लगता है, सब ठीक है। सब प्रसन्न और संतुष्ट हैं। यह मेरे और भगवान के मध्य का मामला है। भगवान ने मुझे आश्वासन दिया है कि भगवत्-प्राप्ति के बाद तुम्हारी सारी पीड़ायें, अच्छे-बुरे सारे कर्म और सारे क्षोभ — समाप्त हो जायेंगे।
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भगवत्-प्राप्ति — घटित होने वाली कोई घटना नहीं, समर्पित होने के भाव की पूर्णता है। जिस क्षण हमारा समर्पण पूर्ण होगा उसी क्षण हमें भगवान की प्राप्ति हो जायेगी। यही आत्म-साक्षात्कार है। हरिः ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
७ अप्रेल २०२५

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