पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब संसार में अधर्म और अराजकता बढ़ने लगी, तब भगवान विष्णु ने इस समस्या को समाप्त करने के लिए भगवान शिव की तपस्या का संकल्प लिया। उन्होंने कठोर तपस्या शुरू की, जिससे शिवजी प्रसन्न हुए। भगवान विष्णु ने उनसे ऐसा दिव्य अस्त्र मांगा, जो अधर्म का नाश कर सके और धर्म की स्थापना कर सके।

शिवजी ने प्रसन्न होकर विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। यह चक्र केवल एक शस्त्र नहीं था, बल्कि भगवान शिव का आशीर्वाद और शक्ति का प्रतीक था। कहा जाता है कि शिवजी ने इसे देते समय कहा था, “यह चक्र अमोघ है, इसका प्रहार कभी व्यर्थ नहीं जाएगा। यह अधर्म और अन्याय का अंत करेगा।”
सुदर्शन चक्र की उत्पत्ति की कथा भी उतनी ही रोचक है। एक मान्यता के अनुसार, विश्वकर्मा, जो देवताओं के महान शिल्पकार थे, ने इसे सूर्य के तेज से बनाया था। कहते हैं कि सूर्यदेव के तेज का एक हिस्सा अत्यधिक प्रखर था, जिससे देवता असहज हो रहे थे। तब विश्वकर्मा ने उस तेज को काटकर सुदर्शन चक्र का निर्माण किया और इसे भगवान शिव को भेंट किया। शिवजी ने इसे विष्णु को प्रदान किया, जिससे यह चक्र भगवान विष्णु का प्रमुख अस्त्र बन गया।
भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का उपयोग कई महत्वपूर्ण अवसरों पर किया। इस चक्र ने न केवल दैत्यों का संहार किया, बल्कि देवताओं की रक्षा और धर्म की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विष्णु ने इस चक्र की सहायता से मधु और कैटभ जैसे शक्तिशाली दैत्यों का वध किया। इसी चक्र ने समुद्र मंथन के समय भी अमृत कलश की रक्षा की।
विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने भी सुदर्शन चक्र का उपयोग अनेक बार किया। कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने सबसे पहले राजा श्रृगाल का वध इसी चक्र से किया था। महाभारत में भी यह चक्र श्रीकृष्ण के साथ-साथ धर्म की स्थापना में सहायक बना। विशेष रूप से, जब पांडवों और कौरवों के बीच धर्मयुद्ध चल रहा था, तब इस चक्र ने धर्म की जीत सुनिश्चित की।
एक रोचक प्रसंग यह है कि अश्वत्थामा, जो महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण से सुदर्शन चक्र मांगने की इच्छा रखते थे, उन्होंने इसे पाने की कोशिश की। लेकिन श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कर दिया कि यह चक्र केवल धर्म की रक्षा के लिए है और इसे किसी अन्य को देना उचित नहीं।
सुदर्शन चक्र का महत्व केवल एक अस्त्र तक सीमित नहीं है। यह धर्म, सत्य, और न्याय का प्रतीक है। इसे धारण करने वाले भगवान विष्णु और उनके अवतार श्रीकृष्ण ने इसे केवल अधर्म और अन्याय के विनाश के लिए उपयोग किया। इसकी तेजस्विता और अमोघ शक्ति यह दर्शाती है कि सुदर्शन चक्र न केवल भौतिक शक्ति है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का भी प्रतीक है।
यह चक्र हमें यह संदेश देता है कि शक्ति का उपयोग हमेशा धर्म और सत्य की रक्षा के लिए होना चाहिए। भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण ने इसे अपने कर्तव्यों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल किया, जो यह बताता है कि यह केवल एक अस्त्र नहीं, बल्कि एक दैवीय उत्तरदायित्व का प्रतीक है!