गलत दिशा में बढ़ रही भीड़ का हिस्सा होने से अच्छा है, सही दिशा में अकेले ही चलें… अर्थात हमें जो चीज सही लगें वहीं करें, किसी के कहने पर अपना निर्णय कभी न बदलें: दिखावे की कोशिश,न करो…!
जब दिखने के,
काबिल हो जाओगे
तो ख़ुद नज़र आ जाओगे
त्याग वही करना चाहिए, जहाँ उसकी कद्र और उपयोगिता हो,* *क्योकि,
दोपहर को दिया जलाने से अंधकार नही बल्कि दीये का वजूद कम होता है।
यकीन मानो वो सब लौटेगा जो आप किसी और को दे रहे हो।
आप उस क्षण आज़ाद हो जाएंगे जिस क्षण आप ये चिंता करना छोड़ देंगे कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं।
आज से हम* इस चिंता को छोड़ दें कि दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं…