अष्टावक्र ऋषि//राजा जनक के दरबार में अष्टावक्र ऋषि का आगमन एक महत्वपूर्ण घटना थी।जब अष्टावक्र दरबार में पहुंचे, तो उनकी शारीरिक बनावट (आठ अंगों से विकलांग) को देखकर दरबारियों ने उन पर हंसा।अष्टावक्र ने दरबारियों के हंसने पर कहा कि वे उनकी शारीरिक बनावट पर नहीं, बल्कि उनके ज्ञान पर ध्यान दें….

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राजा जनक के दरबार में अष्टावक्र ऋषि का आगमन एक महत्वपूर्ण घटना थी। राजा जनक, जो आत्मज्ञान की तलाश में थे, ने अपने दरबार में कई विद्वानों को आमंत्रित किया था। अष्टावक्र, जो शारीरिक रूप से विकलांग थे, भी वहां पहुंचे। उनकी शारीरिक बनावट पर दरबारियों ने हंसा, लेकिन अष्टावक्र ने उन्हें ज्ञान का पाठ पढ़ाया और राजा जनक को आत्मज्ञान प्राप्त करने में मदद की। 

राजा जनक की आत्मज्ञान की खोज:
राजा जनक एक ज्ञानी राजा थे और आत्मज्ञान की तलाश में थे। उन्होंने अपने दरबार में विद्वानों को आमंत्रित किया था ताकि वे उनसे ज्ञान प्राप्त कर सकें. 
अष्टावक्र का दरबार में आगमन:
अष्टावक्र, जो अपने पिता कहोल के साथ शास्त्रार्थ में भाग लेने आए थे, भी राजा जनक के दरबार में पहुंचे। कहोल को बंदी नामक विद्वान ने शास्त्रार्थ में हरा दिया था और जल समाधि की सजा दी गई थी. 
दरबारियों का अष्टावक्र पर हंसना:
जब अष्टावक्र दरबार में पहुंचे, तो उनकी शारीरिक बनावट (आठ अंगों से विकलांग) को देखकर दरबारियों ने उन पर हंसा। उन्होंने सोचा कि एक विकलांग व्यक्ति उन्हें क्या ज्ञान देगा. 
अष्टावक्र का ज्ञान:
अष्टावक्र ने दरबारियों के हंसने पर कहा कि वे उनकी शारीरिक बनावट पर नहीं, बल्कि उनके ज्ञान पर ध्यान दें। उन्होंने कहा कि शरीर की बनावट से ज्ञान का कोई संबंध नहीं है। उन्होंने राजा जनक को भी ज्ञान का महत्व समझाया. 
अष्टावक्र द्वारा बंदी को हराना:
अष्टावक्र ने बंदी को शास्त्रार्थ में हराया और अपने पिता कहोल को मुक्त कराया। बंदी ने यह भी स्वीकार किया कि उसने अन्य विद्वानों को भी जल समाधि दी थी और उन्हें वापस बुलाने का वादा किया था. 
राजा जनक का अष्टावक्र को गुरु बनाना:
राजा जनक ने अष्टावक्र के ज्ञान और विद्वता को देखकर उन्हें अपना गुरु मान लिया। उन्होंने अष्टावक्र से आत्मज्ञान प्राप्त किया. 

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