Gabbar Singh was modelled on Gabbar Singh Gujjar, a dacoit who had menaced the villages around Gwalior in the 1950s
युवा राजेंद्र प्रसाद मोदी डीएसपी रैंक के ऑफिसर थे। मोदी ने उसी साल कुख्यात डकैत पुतलीबाई के ख़िलाफ़ हुए अभियान में भी हिस्सा लिया था। कमान संभालते ही मोदी ने डाकू गब्बर सिंह के बारे में सूचनाएं इकठ्ठा करना शुरू किया। पुख्ता जानकारी मिलने के बाद मोदी पुलिस टीम को साथ लेकर गब्बर को खत्म करने के इरादे से चंबल के बीहड़ में जा घुसे। साल 1959 में नवंबर के महीने में मोदी की टीम ने गब्बर सिंह और उसके डकैत साथियों को उनकी मांद में चारों तरफ से घेर लिया। पुलिस की इस कार्रवाई की खबर मिलते ही कुख्यात गब्बर सिंह बौखला उठा।

इसके बाद शुरू हुआ पुलिस और डकैतों के बीच भीषण मुठभेड़। कहा जाता है कि उस वक्त इस मुठभेड़ को कई लोगों ने देखा था। आस-पास के लोगों ने बसों और ट्रेनों की छत पर चढ़कर अपनी आंखों से इस मुठभेड़ को देखा। 14 नवंबर की शाम घंटों चली इस मुठभेड़ में गब्बर सिंह पुलिस द्वारा किया गये ग्रेनेड हमले में गंभीर रूप से जख्मी हो गया। डकैत गैंग के कई सदस्य मारे गए और फिर जल्दी ही गब्बर सिंह भी एनकाउंटर में ढेर हो गया”
गब्बर सिंह के मारे जाने की खबर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को तत्कालीन मध्य प्रदेश पुलिस चीफ केएफ.रुस्तमजी ने सबसे पहले दी थी। असली डाकू गब्बर सिंह के किस्से दर्ज हैं रुस्तमजी की डायरी में जो 50 के दशक में मध्य प्रदेश पुलिस के महानिरीक्षक थे। रुस्तमजी रोजाना डायरी लिखते थे। जिसे पूर्व आईपीएस अधिकारी पीवी रोजगापल ने बाद में उनसे अनुमति लेकर एक किताब की शक्ल दी। यह किताब थी ‘द ब्रिटिश, द बैंडिट्स एंड द बॉर्डरमैन.’।
इस किताब में इस बात का जिक्र है कि जब गब्बर सिंह के खात्मे के बाद ग्वालियर के कमिश्नर ने साहसी पुलिस अधिकारी मोदी से पूछा कि ‘तुम गब्बर सिंह के इतने करीब क्यों चले गए थे..तुम मर भी सकते थे..तुम पागल हो।’ इसका जवाब रुस्तमजी ने अपनी किताब में देते हुए लिखा कि ‘बहादुर और पागल आदमी में फ़र्क होता है…अगर मोदी उस समय वो पागलपन नहीं दिखाते तो वो इस बहादुरी से काम नहीं कर पाते’।”
कहा जाता है कि असली गब्बर सिंह का जन्म सन् 1926 में भिंड जिले के गांव डांग में एक गरीब परिवार में हुआ था। पहलवानी के शौकीन गब्बर सिंह ने गांव के अखाड़े में बड़े-बड़े सूरमाओं को धूल चटाया और नाम भी कमाया। लेकिन 29 साल की उम्र में गब्बर सिंह ने अपना घरबार छोड़ दिया और उस वक्त के कुख्यात डाकू कल्याण सिंह के गैंग में शामिल हो गया। लेकिन जल्दी ही गब्बर सिंह ने अपनी अलग गैंग बना ली।
यूपी, एमपी और राजस्थान के कुछ इलाकों में गब्बर सिंह के खौफ ने लोगों की रातों की नींद उड़ा रखी थी। शुरू में उसने रोटी और दूध के लिए अपराध की दुनिया में कदम रखा और फिर धीरे-धीरे वो चंबल की घाटी का सबसे खौफनाक डाकू बन गया। गब्बर सिंह ने कई पुलिसवालों के नाक-कान भी काट लिए थे।
आपको बता दें कि फिल्म ‘शोले’ में डाकू गब्बर सिंह का किरदार अमजत खान ने निभाया था। गझिन कांटेदार दाढ़ी और उससे टपकती क्रूरता, न दिखने वाली गर्दन में फंसा ताबीज, कंधे पर लटकी कारतूस की पेटी, कमर के बजाए हाथ में झूलती बेल्ट, वो अरे ओ सांभा! कितने आदमी थें, वाला सवाल, वो खूंखार हंसी और बात-बात में आ…थू। फिल्म में गब्बर सिंह का एक-एक डायलॉग आज इतने सालों बाद भी लोगों के जेहन में जिंदा है। इस फिल्म की कहानी सलीम खान ने लिखी थी।
source :”Jansatta” digital desk
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