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हमारे ऋषियों और मुनियों द्वारा किये आविष्कार
आचार्य कणाद :
कणाद परमाणुशास्त्र के जनक हैं । आधुनिक काल में अणुविज्ञानी जॉन डाल्टन से भी हजारों वर्ष पूर्व आचार्य कणाद ने यह रहस्य बताया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं ।
भास्कराचार्य :
आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है । परन्तु गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई हजार वर्ष पूर्व भास्कराचार्यजी ने इसे बताया ।
भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है । इसी कारण से आकाशीय पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है ।’
आचार्य चरक :
चरकसंहिता जैसा महत्तवपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गये हैं । आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन अविष्कार किया था । आज के समय की सबसे अधिक होने वाली मधुमेह, हृदय रोग व क्षय रोग जैसी बीमारियों के निदान व उपचार का ज्ञान हजारों वर्षों पूर्व ही बता दिया था ।
भारद्वाज :
कई सदियो पूर्व ऋषि भारद्वाज ने अपने ग्रन्थ ‘विमानशास्त्र’ में वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह, और एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य बताया था । इस प्रकार ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है ।
कण्व :
वैदिक कालीन ऋषियों में कण्व का नाम प्रमुख है । इनके आश्रम जो कि उत्तराखंड में मालनी नदी के तट पर कोटद्वार में था । इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था । माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।
कपिल मुनि :
इनके पिता कर्दम ऋषि और माता देवहूती थी । कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रवर्तक माने जाते हैं । इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने स्वयं के अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख प्रकट किया । ऋषि कर्दम देवहूती को इस विषय में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही । समय आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही ‘सांख्य दर्शन’ कहलाता है ।
पतंजलि :
आधुनिक काल में प्राणघातक रोगों में एक कैंसर (कर्करोग) का आज उपचार संभव है । परन्तु कई सदियों पूर्व ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर का उपचार करने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है ।
शौनक :
वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला । शिष्यों की यह संख्या कई आधुनिक विश्वविद्यालयों की तुलना से भी कहीं अधिक थी ।
महर्षि सुश्रुत :
ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक
(सर्जन) माने जाते हैं । वे शल्यकर्म (आपरेशन) में दक्ष थे । महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गयी ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई महत्वपूर्ण ज्ञान विस्तार से बताया है । इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन १२५ से भी अधिक शल्यचिकित्सा में आवश्यक औजारों के नाम और ३०० प्रकार की शल्यक्रियाओं व उसके पूर्व की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरा ज्ञान दिया गया है ।
जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया का अविष्कार लगभग चार सदी पूर्व ही की है । माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में कुशल थे । यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे ।
वशिष्ठ :
वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे । दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने उनसे ही शिक्षा पायी थी । देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी ।
विश्वामित्र :
ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे । ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली पराजय के पश्चात तपस्वी हो गये । विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पायी । इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली का अविष्कार हजारों वर्ष पूर्व विश्वामित्र ने ही किया था ।
ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं ।
महर्षि अगस्त्य :
महर्षि अगस्त्य ने ही सर्वप्रथम बिजली का आविष्कार किया था । ये घोर तपस्वी थे । रामायण के अरण्यकाण्ड में श्री राम और महर्षि अगस्त्य के बीच वार्तालाप मिलता है । महर्षि अगस्त्य ने श्री राम को धर्मयुद्ध के लिय दिव्य अस्त्र- शस्त्र दिये थे, और रामसेतू निर्माण हेतू जल विखण्डन का सूत्र दिया ।
गर्गमुनि :
गर्ग मुनि नक्षत्रों के अविष्कारक माने जाते हैं । अर्थात सितारों के संसार के जानकार थे । गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के विषय में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सत्य साबित हुआ ।
कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा । इसके पीछे कारण यह था कि युद्ध के पूर्व पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी । इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी । पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गयी और उसी दिन चंद्रग्रहण था । तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति और परिणाम गर्ग मुनि जी ने पहले बता दिये थे ।
बौद्धायन :
वे भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं । कई सदियों पूर्व ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी थी ।
दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई कठिन प्रश्नों का उत्तर बौद्धयन ने सरल बनाया ।

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