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प्राचीन भारत में, एक बहुत ही दयालु व्यापारी रहता था। वह निर्धन लोगों को पैसे दान करता था और अपने दोस्तों की हमेशा मदद करता था। उस व्यापारी ने एक दिन अपना सारा पैसा और पैसे के साथ अपनी ख्याति भी खो दी। उसके दोस्त उसे अनदेखा करने लगे। इन सबसे तंग आकर एक रात उसने सोचा, “मैंने सब कुछ खो दिया, कोई मेरे साथ नहीं है। मुझे मर जाना चाहिए।”

यह सोचते सोचते उसे गहरी नींद आ गई। सोते हुए उसने एक सपना देखा। सपने में एक भिक्षु ने उससे कहा, “कल मैं तुम्हारे द्वार पर आऊंगा। तुम्हें मेरे सिर पर लाठी से चोट करनी होगी। मैं सोने की मूर्ति में बदल जाऊंगा।” लगभग सुबह हो चुकी थी। व्यापारी जागा और सपने के बारे में सोचने लगा।

फिर कुछ समय बाद, एक भिक्षु ने घर के दरवाजे पर दस्तक दी। व्यापारी ने भिक्षु को अंदर बुलाया। व्यापारी ने भिक्षु के सिर पर लाठी से वार किया और भिक्षु तुरंत ही सोने की मूर्ति में बदल गया। पास से ही एक पड़ोसी जा रहा था उसने यह सब देख लिया।

लालची पड़ोसी ने व्यापारी की नकल करने का फैसला लिया। अगले दिन पड़ोसी एक आश्रम में गया और कुछ भिक्षुओं से एक कठिन पुस्तक को समझाने के लिए अपने घर पर आने का आग्रह किया। भिक्षुओं ने उसका आग्रह स्वीकार कर लिया।

अगले दिन कई भिक्षु उस पड़ोसी के घर आए। उसने अपने घर का द्वार बंद कर दिया और भिक्षुओं के सिर पर लाठी से प्रहार करना शुरू कर दिया। जब एक भी भिक्षु सोने की मूर्ति में नहीं बदला तो पड़ोसी निराश हो गया।

पड़ोसी को भिक्षुओं पर हमला करने के अपराध में बंदी बना लिया गया। पड़ोसी ने अपने कृत्य के लिए व्यापारी को दोषी ठहराया। राजा ने व्यापारी को राजदरबार में बुलाया। व्यापारी ने राजा को अपने सपने के बारे में सब कुछ बता दिया। उसने कहा, “महाराजा, मैंने पड़ोसी से भिक्षुओं पर हमला करने के लिए नहीं कहा। पड़ोसी को यह मूर्खता करने से पहले इसके दुष्परिणामों के बारे में सोचना चाहिए था।”

राजा व्यापारी की बात से सहमत था अत‌‌: उसने व्यापारी को मुक्त कर दिया और सैनिकों से मूर्ख पड़ोसी को कारागार में डालने का आदेश दिया।

*शिक्षा:-*
मित्रों! बिना सोचे समझे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए।

*सदैव प्रसन्न रहिये – जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है – उसके पास समस्त है।

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