श्राद्धपक्ष ( पितृपक्ष )
श्राद्ध अपने पूर्वजों, अपने पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने की क्रिया का नाम है। हमारे पूर्वज अपने पितरों में इतनी श्रद्धा रखते थे कि मरने के बाद भी उन्हें याद करते थे और उनके सम्मान में यथायोग्य श्रद्धा से भोजन ( पंचबलि किया करते थे ) दान किया करते थे। अपने पितरों के प्रति यही श्रद्धान्जलि ही कालांतर में श्राद्ध कर्म के रूप में मनाई जाने लगी।
श्रद्धा तो आज के लोग भी रखा करते हैं मगर मूर्त माँ बाप में नहीं अपितु मृत माँ – बाप में। माँ – बाप के सम्मान में जितने बड़े आयोजन आज रखे जाते हैं , शायद ही वैसे पहले भी रखे गये हों। फर्क है तो सिर्फ इतना कि पहले जीते जी भी माँ – बाप को सम्मान दिया जाता था और आज केवल मरने के बाद दिया जाता है।
श्रद्धा वही फलदायी होती है जो जिन्दा माँ – बाप के प्रति हो और मरने के बाद किया जाने वाला श्राद्ध आप अपने सुख शांति के लिए सिर्फ कर रहें हैं। जो मूर्त माँ – बाप के प्रति श्रद्धा रखता है वही मृत माँ – बाप के प्रति श्राद्ध कर्म करने का सच्चा अधिकारी भी बन जाता है।