सफलता का अर्थ है अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना, न कि दूसरों से बेहतर होना। अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करें और उन्हें प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करें।
मानव जीवन में पारिवारिक समस्याओं का मूल कारण पितृदोष होता है। अर्थात् किन्हीं कारणों से पूर्वज मोक्ष नही पाते और इसी लोक में भटकते हैं। तब वह अपेक्षा रखते हैं कि उनका वंशज उनकी आत्म शांति के निमित्त कुछ अनुष्ठान करेगा। परंतु वंशज लोग उधर ध्यान नही दे पाते, इससे वह अतृप्त असंतुष्ट आत्मायें अनेक प्रकार के उपद्रव करती हैं।
शास्त्रों में पितृशान्ति के कई उपाय दिए गये हैं, परंतु उनमें सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी उपाय श्रीमद् भागवत महापुराण का अनुष्ठान है। जिन प्रचंड पूर्वजों की आत्मायें गया तीर्थ में पिंड श्राद्ध आदि के बाद भी मुक्त नहीं होतीं, वह श्रीमद् भागवत महापुराण के विधिवत् पाठ कथा से निश्चित ही मुक्त होकर अपने वंशजों को सुख सौभाग्य का आशीर्वाद देते हुए वैकुण्ठगमन करती हैं।
श्रीमद् भागवत सभी पुराणों में सर्वश्रेष्ठ और मुक्तिदान की घोषणा करने वाला ग्रंथ है। जीवन सुधारने के लिए रामायण, मरण सुधारने के लिए श्रीमद् भागवत, और आचरण सुधारने के लिए महाभारत का पठन श्रवण करते रहना चाहिए।
विशेषकर पूर्वजों की आत्मशांति हेतु श्रीमद् भागवत से बढ़कर कोई सरल विकल्प संसार में दूसरा नहीं है –
किं श्रुतैबहुभिः शास्त्रैः पुराणैश्च भ्रमावहैः ।
एकं भागवतं शास्त्रं मुक्तिदानेन गर्जति ॥
आचार्य सन्तोष अवस्थी