बदसूरत सी दिखने वाली इस औषधि का नाम है #छोटीहरड़।
वैद्यक ग्रंथ राज वल्लभ निघंटु में लिखा है कि –
यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरीतकी।
कदाचिद् कुप्यते माता, नोदरस्था हरीतकी ॥
अर्थात् हरीतकी (हरड़) मनुष्यों की माता के समान हित करने वाली है। माता तो कभी-कभी कुपित भी हो जाती है, परन्तु उदर स्थिति अर्थात् खायी हुई हरड़ कभी भी अपकारी नहीं होती। इस दुनिया में जिसकी माता नहीं है उसकी माता हरड़ है ।
एक अन्य ग्रंथ में लिखा है कि जन्म देने वाली माता नाराज हो सकती है मगर पेट में गई हुई हरड़ नाराज नहीं दे सकती। कहने का भाव है कि जैसे माता बालक को कोई कष्ट नहीं होने देती उसी प्रकार हरड़ का सेवन करने से यदि दस्त भी लग जाए तो पेट में दर्द या जलन नहीं होगी, अपितु सहजता से विरेचन कर काया को निरोगी बनाती है ।
हरीतकी ऐसा पथ्य, रसायन व औषधि है जिसमें 857 पेटेंट्स लिये जा चुके हैं
हरीतकी को आयुर्वेद की प्राचीन संहिताओं में पथ्यकारी, रसायन व उत्कृष्ट औषधि माना गया है। फलों की बनावट के आधार पर हरीतकी या हरड़ को विजया, रोहिणी, पूतना, अमृता, अभया, जीवन्ती व चेतकी नामक 7 प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है। यूनानी चिकित्सा में इसे प्रायः हलेलह-स्याह (सूखकर काली हो गयी हरड़), हलेलह-ज़र्द (अधपकी पीले रंग की हरड़), और हलेलह-काबुली (पूर्ण परिपक्व हरड़) में वर्गीकृत किया जाता है।
हरीतकी एक उत्कृष्ट रसायन और प्रभावी औषधि है। राजबल्लभ निघण्टु में वर्णित एक मनोहारी लाक्षणिकता देखिये: यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरीतकी। कदाचिद् कुप्यते माता, नोदरस्था हरीतकी॥ अर्थात, जिसकी माँ घर पर न हो, उसकी माँ हरीतकी है। माता तो कभी-कभी नाराज भी हो सकती है, परन्तु उदरस्थ हरड़ कभी भी हानिकारक नहीं होती। इसी प्रकार मदनपाल निघण्टु में दृष्टव्य है: हरते सर्वरोगांश्च तस्मात् प्रोक्ता हरीतकी॥ अर्थात हरीतकी नाम इसलिये पड़ा, क्योंकि यह सब रोगों का नाश करती है। जैसा कि आचार्य वाग्भट ने अष्टांगहृदय में लिखा है (अ.हृ.उ. 39.147): गुडेन मधुना शुण्ठ्या कृष्णया लवणेन वा। द्वे द्वे खादन् सदा पथ्ये जीवेद्वर्षशतं सुखी॥ इसके अतिरिक्त भी ऋ़तुओं, रोगों और परिस्थितियों के अनुसार, आयुर्वेदाचार्यों की सलाह से, हरीतकी को गुड़, शहद, शुंठी, काली मिर्च, सैंधव लवण, मिश्री, या पिपली के साथ ग्रहण करने के अनेक योग आयुर्वेद की संहिताओं में निर्दिष्ट हैं। संहिताओं में तो बहुत विस्तृत वर्णन है, पर उस सबका निचोड़ आचार्य चरक का यह महावाक्य माना जा सकता है (च.सू. 25.40): हरीतकी पथ्यानाम्। अर्थात पथ्यकारी द्रव्यों में हरीतकी सर्वश्रेष्ठ है।
हरड़कासेवन कैसे करें –
तवे पर एक दो चम्मच देसी घी डालकर बहुत धीमी आंच में हरड़ को तलिए। हरड़ फूल जाएगी। अधिक न जलने दें। किसी डिब्बे में भर लें । दो-तीन रात को खा लें। जिन्हें कब्ज रहता है पेट साफ नहीं होता है वे जरूर खाएं। सुबह पेट ऐसे साफ होगा जैसे साधू संत महाराज अपनी पीतलकी लुटिया को चमकाकर रखते हैं। घी में इसलिए तला जाता है ताकि खुश्की ना करे। इन अनमोल औषधियों का प्रचार इसलिए नहीं होता क्योंकि ये बाजार के फलने-फूलने( मार्केटिंग)की विषय वस्तु नहीं हैं । त्रि+फला यानी तीन फलों के संयोग वाला। त्रिफला में आंवला, बहेड़ा के साथ तीसरा फल हरड़ ही होता है ।
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